हिन्दी का पहला उपन्यास श्री निवास दास द्वारा लिखित परीक्षा गुरू माना जाता है। उपन्यास को पहले पहल सामाजिक जीवन से जोडऩे का कार्य उपन्यास सम्राट प्रमेचन्द्र ने किया था। वे उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मानते थे। ‘‘मानव चरित्र पर प्रकाश डालना तथा उसके रहस्य को खोलना ही उपन्यास का मूल तत्व है।’’
प्राचीन काल मे उपन्यास अविर्भाव के समय इसे आख्यायिका नाम मिला था। ‘‘कभी इसे अभिनव की अलौकिक कल्पना, तो कभी प्रबन्ध कल्पना, कभी आश्चर्य वृत्तान्त कथा तो कभी प्रबन्ध कल्पित कथा, कभी एक सांस्कृतिक वार्ता, तो कभी नोबेल, कभी नवन्यास, तो कभी गद्य काव्य नाम से प्रसिद्धि मिली। उपलब्ध रचनाओ में ‘‘मालती’’ 1875 के लिए इस विद्या को उपन्यास नाम मिला।’’
उपन्यास शब्द में ‘‘अस’’ धातु है। ‘‘नि’’ उपसर्ग से मिलकर न्यास शब्द बनता है। न्यास शब्द का अर्थ है धरोहर। उपन्यास शब्द दो शब्दों उप+न्यास से मिलकर बना है। ‘‘उप’’ अधिक समीप वाची उपसर्ग है, संस्कृत के व्याकरण सिद्ध शब्दों, न्यास व उपन्यास का पारिभाषिक अर्थ कुछ और ही होता है। एक विशेष प्रकार की टीका पद्धति को न्यास कहते हैं। हिन्दी मे उपन्यास शब्द कथा साहित्य के रूप में प्रयागे होता है। वहीं बगंला भाषा मे उसे उपन्यास, गजुराती में नवल कथा, मराठी में कादम्बरी तथा उर्दू में नावले शब्द के रूप में प्रयोग करते हैं।
वे सभी ग्रंथ उपन्यास हैं जो कथा सिद्धान्त के कम ज्यादा नियमो का पालन करते हुए मानव की सतत्, संगिनी, कुतूहल, वृत्ति को पात्रो तथा घटनाओ को काल्पनिक तथा ऐतिहासिक संयोजन द्वारा शान्त करte हैं। उपन्यास का प्रारम्भ उसी समय से हो गया था, जब एक व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति के साथ अपनत्व की भावना से विचार-विनिमय किया था। उपन्यास की वृित्त का प्रारम्भ मानव चेतना की उत्सुकता से होता है।
डा0 श्यामसुन्दर दास ने उपन्यास की परिभाषा इस प्रकार से दी है-उपन्यास मनुष्य जीवन की काल्पनिक कथा है। उपन्यासकार सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र जी लिखत े हैं कि ‘‘मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मात्र समझता हूँ। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना तथा उसके चरित्रों को स्पष्ट करना ही उपन्यास का मूल तत्व है।’’
डा0 भगीरथ मिश्र के शब्दों में : ‘‘युग की गतिशील पृष्ठभूमि पर सहज शैली मे स्वाभाविक जीवन की पूर्ण झाँकी को प्रस्तुत करने वाला गद्य ही उपन्यास कहलाता है।’’
निष्कर्षत: बाबू गुलाबराय के शब्दो में : ‘‘उपन्यास कार्य कारण श्रृंखला मे बंधा हुआ वह गद्य कथानक है जिसमें वास्तविक व काल्पनिक घटनाओ द्वारा जीवन के सत्यों का उद्घाटन किया है।’’
उपन्यास के प्रकार
विचारो को ही उत्तेजित करते थे, भावो का उद्रेक नहीं करते थे।’’
हिन्दी के दूसरी पीढ़ी के उपन्यासकार अपने कर्तव्य व दायित्व के प्रति सजग थे। वे कलावादी होने के साथ-साथ सुधार वादी तथा नीतिवादी भी थे। उनके लिए उपन्यास केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि जीवन संगम का अस्त्र था। उन्होनें संस्थाओं की आलोचना द्वारा समाज की बुराइयो का पर्दाफाश कर विनाश पर आँसू बहाने के बदले निर्माण का संदेश दिया। हिन्दी के उपन्यासकार एक साथ ही प्रगतिशील व दूरदश्र्ाी थे, उनके विचार समय के अनुकूल होते हुए भी समयानुसार आगे के थे। कोई लेखक कृति को कला कृति मानकर उसके कक्षा पक्ष को महत्व देता है, तो कोई लख्ेाक कृति को आलोचना मान कर विचार तत्व को महत्व देता है। वस्तुत: वह विचार तत्व ही है जो उपन्यास को सार्थक व सुन्दर बनाता है।
भाषा शैली कहानी कहने में समर्थ है, उसमें सरलता के साथ-साथ सौष्ठव भी है। मुहावरो व कहावतो ने उसमे ताजगी और जान डाल दी है। सूक्ष्म अनुशीलन पर निम्न प्रकार के उपन्यासो के दर्शन होते हैं:-
- (1) सांस्कृतिक उपन्यास
- (2) सामाजिक उपन्यास
- (3) यथार्थ वादी उपन्यास
- (4) एेितहासिक उपन्यास
- (5) मनोवैज्ञानिक उपन्यास
- (6) राजनीतिक उपन्यास
- (7) प्रयागेात्मक उपन्यास
- (8) तिलस्मी जादुई उपन्यास
- (9) वैज्ञानिक उपन्यास
- (10) धार्मिक उपन्यास
- (11) लोक कथात्मक उपन्यास
- (12) आँचलिक उपन्यास
- (13) रोमानी उपन्यास
- (14) कथानक प्रधान उपन्यास
- (15) चरित्र प्रधान उपन्यास
- (16) वातावरण प्रधान उपन्यास
- (17) महाकाव्यात्मक उपन्यास
- (18) जासूसी उपन्यास
- (19) समस्या प्रधान उपन्यास
- (20) भाव प्रधान उपन्यास
- (21) आदर्श वादी उपन्यास
- (22) नीति प्रधान उपन्यास
- (23) प्राकृतिक उपन्यास।
संदर्भ –
- बाबू गुलाब राय काव्य के रूप, आत्मा राम एंड संस, दिल्ली, प्रथम-
1970, 04 - डा0 रमेश चन्द्र शर्मा हिन्दी साहित्य का इतिहास, विद्या प्रकाशन गुजैनी, कानपुर चतुर्थ- 2008, 14
- डा0 श्री भगवान
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(यू0पी0 बोर्ड) रवि आफसेट
प्रिंटर्स, आगरा, द्वितीय
2003-
04, 02 - डा0 बद्रीदास हिन्दी उपन्यास पृष्ठ भूमि और परम्परा ग्रंथम प्रकाशन, रामबाग कानपुर प्रथम- 1966, 89
9. - डा0 बद्रीदास हिन्दी उपन्यास पृष्ठ भूमि और परम्परा ग्रंथम प्रकाशन, रामबाग कानपुर प्रथम- 1966, 90
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