विभिन्न अंग जैसे कि पौधो के तने जड़ों और प्राणियों के अमाशय हृदय और फेफड़े
विभिन्न प्रकार के ऊतको के बने होते है। ऊतक ऐसी कोशिकाओं का एक समूह होता है।
जिसका उद्भव सरंचना और कार्य समान हाते हैं। इनके सामान्य उद्भव का अर्थ हैं कि वे
भ्रूण में कोशिकाओं के एक ही स्तर से व्युत्पन्न होती है। सामान्य उद्भव के होने के कारण
उनकी सरंचना तो सामान्य होती हैं, और इसलिए वे समान कार्य भी करती हैं। अनेक प्रकार
के संघटित होकर एक अंग का निर्माण करते है। उदाहरण : रूधिर, अस्थि, उपस्थि आदि प्राणी ऊतकों के कुछ उदाहरण है जबकि
पैरेन्काइमा, कोलेन्काइया, जाइलम और फलाऐ म पौधों के विभिन्न प्रकार के ऊतक हैं। ऊतकों
के अध्ययन को ऊतक विज्ञान (हिस्टोलॉजी) कहते हैं।
ऊतक के प्रकार
पादप ऊतक
पादप ऊतक प्रमुखत: दो प्रकार के होते है।
- विभज्योतक [Meristenatic]
- स्थायी [Permanent]
विभज्योतक
- अपरिपक्व अथवा अविभेदित कोशिकाओं का बना होता हैं जिनमें अंतरकोशिकीय अवकाश
नहीं होते। - कोशिकाएँ गोलाकार, अंडाकार अथवा बहुभुजी होती है ये कोशिकाएँ हमेशा ही जीवित
और पतली भित्ति वाली होती हैं। - प्रत्येक कोशिका में प्रचुर मात्रा में कोशिकाद्रव्य और सुस्पष्ट केद्रक होता हैं।
- रिक्तिकाए छोटे आकार की होती हैं अथवा होती ही नहीं।
विभज्योतक के प्रकार
प्रकार | स्थान | कार्य |
---|---|---|
शीर्षस्थ विभज्योतक | जड़ और प्ररोह के शीर्ष भाग में |
पौधों की लंबाई में वृद्धि |
अंर्विष्ट विभज्योतक | पत्तियों के आधार पर अथवा पर्वसंधि के आकर पर |
पर्वसंधि-वृद्धि |
पाश्र्व विभज्योतक | जाइलम, फलाऐम तथा कार्क के बीच कैम्बियन पर कैम्बियन द्विबीजपत्री पौधों के कार्टेक्स पर |
पौधे की चौड़ाई और गोलाई में वृद्धि (द्वितीयक वृद्धि) |
स्थायी ऊतक
- स्थायी ऊतक होते हैं, जिनमें विभाजन या तो पूर्णत: अथवा कुछ अवधि के लिए रूक
जाती हैं। - इन ऊतकों की कोशिकाएँ जीवित हो सकती अथवा फिर मृत और पतली भित्ति वाली
अथवा मोटी भित्ति वाली हो सकती हैं। - पतली भित्ति वाले स्थायी ऊतक आमतौर से जीवित होते हैं, जबकि मोटी भित्ति वाले
ऊतक जीवित भी हो सकते हैं अथवा मृत भी।
स्थायी उतकों के प्रकार
सरल ऊतक | जटिल ऊतक |
---|---|
सरल उतक कवेल एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बने होते है। सामान्य सरल ऊतक हैं – पैरेन्काइमा, कोलेन्काइमा और स्कैरेन्काइमा। |
जटिल उतक एक से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं जो एक इकाई के रूप में कार्य करते हैं। इसके सामान्य उदाहरण जाइलम और फ्लोएम है। |
सरल पादप ऊतक –
सरल पादप ऊतक तीन प्रकार के होते हैं-
- मृदूतक (पैरेन्काइमा) (क्लोरेनकाइमा और ऐरेन्काइमा)
- स्थूलकोण (कोलेन्काइमा)
- दृढ़ उतक (स्केलेरेनकाइमा)
जटिल ऊतक –
जटिल उतक प्रधानता: दो प्रकार के होते है।
जाइलम –
- जाइलम एक संवाहक ऊतक हैं जो जडा़ें से लेकर स्तंभ और पत्तियों तक एक अविच्छिन्न
तंत्र बनाते है। - इन्हें सवं हनी उतक भी कहते हैं और ये जडा़ें एवं स्तंभों के भीतर सवं हनी बंडलों के रूप
में विद्यमान होते हैं। - जाइलम (क) टै्रकीडो, (ख) वाहिकाओं (ग), रेशों, (घ) जाइलम पैरेन्काइमा का बना होता
हैं।
फ्लोएम –
- फ्लोएम भी एक संवहनी ऊतक हैं जों पत्तियों में संश्लेषित भोजन को पौधे के विभिन्न
भागों तक पहंॅुचाता है। - फ्लोएम (क) चालनी नलिकाओं, (ख) सहचर (साखी) कोशिकाओं (ग) फलोएम रेशों, (घ)
फ्लोएम पैरेन्काइमा का बना होता हैं।
पौधे के शीर्ष और जड़ के छोर पर होने वाली पादप-वृद्धि के सिद्धांत – प्ररोह और जड़ के सिरों पर होने वाली पादप वृद्धि को समझाने के लिए दो प्रमुख
सिद्धांत प्रस्तुत किए गए हैं। ये सिंद्धात हैं [i] टयूनिका कॉपर्स [Tunica corpus
Theory, और [ii] ऊतकजन सिद्धांत [Histogen theory]।
[i] ट्यूनिका कॉर्पस सिंद्धात : –
- ट्यूनिका कॉर्पस सिंद्धात का प्रतिपादन कायिक प्ररोह शीर्ष के लिए किया गया था।
- इस सिद्धांत के अनुसार, शीर्षस्थ विभ्रज्योतक में ऊतकों के दो क्षेत्र होते हैं: ट्यूनिका क्षेत्र
जिसमें केाशिकाए एक या अधिक परिधीय परतों में व्यवस्थित होती हैं और कॉपर्स क्षेत्र जो
कोशिकाओं के एक संहति या पिंड के रूप में होता हैं तथा ट्यूनिका से चारों तरफ से ढका
होता है। - सिद्धांत के अनुसार, शीर्ष पर होने वाली वृद्धि की दरे एवं विधियॉं उसे अलग-अलग दो
क्षेत्रों मे बॉट देती हैं। - ट्यूनिका की परतों की कोशिकाओं में उपनतिक [anticlinal] अर्थात परिधि से अवलंब
बनाते हुए विभाजन होता हैं और इसी के कारण उनमें सतही वृद्धि होती है। - कॉपर्स में कोशिका-विभाजन अव्यवस्थित रूप से और विभिन्न समतलों पर होता हैं
जिसके कारण संहति के आयतन में वृद्धि होती हैं। - ट्यूिनका से एपिड़र्मिस और वन्कुट का निर्माण होता है। कॉपर्स से एंडोडर्मिस के
पेरिसाइकल (परिरम्भ), पिथ और संवहनी ऊतकों का निर्माण होता हैं।
[ii] ऊतकजन सिंद्धात (हिस्टोजन सिद्धांत) –
- इस सिद्धांत के अनुसार, स्थान और जड के शीर्षस्थ विभज्योतक ऐसी कोशिकाओं की
छोटी-छोटी संहतियों के बने होते हैं जो एक-दूसरे से मिलती-जलु ती होती है और तेजी
से वृद्धि करती हैं। - ये विभज्योतक कोशिकाएँ विभाजित होकर प्राक्विभज्योतक बनाती हैं जो तीन क्षेत्रों में
विभेदित हो जाता हैं, त्वचाजन (ड़र्मटेाजेन) वल्कुटजन (पैरिब्लेम) और रंभजन (प्लीरोम)। - प्रत्येक क्षेत्र प्रारभंकों के एक-एक समूह का बना होता है जिन्हें ऊतक-जन कहते हैं,
- त्वचाजन स्तंभो के एपिड़र्मिस का और जड़ों की मलू ीय त्वचा (एपीब्लेमा) का निर्माण
करता हैं। - वल्कुटजन (मध्य स्तर) स्तंभो और जड़ों का वल्कुट (कार्टेक्स) बनाता हैं।
- रंभजन (प्लीरामे ) केंदी्रय विभज्याते क क्षेत्र-पेरिसाइकल, पिंथ और सवंहनी ऊतक का
निर्माण करता है।
प्राणि ऊतक
जैसा कि पौधों में होता हैं प्राणियों में भी विभिन्न प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं जो
अलग-अलग कार्य करते हैं।
एपिथीलियम ऊतक –
संरचनात्मक विशिष्टताए
एपिथीलियमी ऊतक बनने वाली कोशिकाएँ : –
- पास-पास सटी हुई होती हैं और उनके बीच अंतरकोशिकीय स्थान नहीं होता।
- अकोशिकीय आधारी झिल्ली से उत्पन्न होती हैं।
- उनमें रूधिर-वाहिकाए नहीं होती।
कार्य
यह ऊतक सतहों को ढॅकंता हैं, अवशोषण में मदद करता हैं और स्त्रवण करता हैं,
तथा इस परजीवद्रव्यी बहिपक्षेपण भी मौजूद हो सकते हैं, जैसे कि सिलिया।
एपिथीलियमी ऊतक के प्रकार
प्रकार | संरचना | स्थान | कार्य |
---|---|---|---|
1. शल्की एपिथीलियम |
कोशिकाएँ चपटी जिनके केंद्र में स्थित केंद्रक/अनियमित बाहरी सतह |
फफेड़ों के वायु-कोशों का अस्तर वृक्क की नलिकाओं का अस्तर रूधिर |
O2 और CO2 का परस्पर विनिमय अवशोषण के लिए पदार्थो का परस्परविनिमय |
2. घनाकार एपिथीलियम |
घन-जैसी कोशिकाएँ जिनके केंद्र में स्थित केंद्रक कोशिकाएँ बहुभुजीय प्रतीत होता हैं। |
लार-एंव अग्न्याश्य वाहिनियों एक अस्तर लार एंव स्वेद ग्रथिंयों में पाए जाते हैं |
अवशोषण के लिए |
3.पक्ष्माभिकी
एपिथीलियम |
युक्त सिरों पर पक्ष्माभ (सिलिया) मौजूद |
वृक्को वाहिकाओं का अस्तर |
स्त्रवण के लिए |
4. स्तंभाकार एपिथीलियन
|
ऊॅंची स्तंभाकार कोशिकाएँ जिनके आधारी सिरों पर केंद्रक मॉजूद रहते हैं। |
आमाशय और आंत्र का अस्तर |
एक विशेष दिशा में तरल पदार्थो का बहाव |
5. क्ष्मामिकी
स्तंभाकार एपिथीलियम |
मुक्त सिंरो पर पक्ष्माभ (सिलियॉं) |
श्वासनली का अस्तर | स्त्रवण और अवशोषण के लिए |
6. बुश र्बाड़र वाला स्तंभाकार एपिथीलियम |
युक्त सिरों पर अनेक कलन |
आंत्र का अस्तर | अवशोषण के लिए सतही क्षेत्र की बढ़ोत्तरी के लिए |
यदि एपिथीलियम कोशिकाएँ केवल एक परत में व्यवस्थित होती हैं तो वे सरल
एपिथीलियम बनाती हैं। यदि एपिथीलियमी कोशिकाएँ अनेक स्तरें में व्यवस्थित होती हैं तब
वे जटिल अथवा स्तरित एपिथीलियम (बहुस्तरी) बनाती है। स्तरित एपिथीलियम शरीर के
उन भागों में पाया जाता हैं, जहॉं पर अधिक टूट-फूट होती है।
यथार्थ योजी ऊतक के प्रकार-
ऐरिओली ऊतक-
सबसे व्यापक रूप से पाये जाने वाला संयोजी ऊतक हैं।
इस ऊतक में पाए जानी वाली विभीन्न कोशिकाएँ निम्न हैं।
- रेशकोरक (फाइब्रोब्लास्ट) – जो आधात्री की पीली (इलेस्टिन) और सफेद (कोलेजन)
रेशें बनाते है। - महाभक्षकाणु (मेक्रोफाज)- जो जीवाणुओं तथा सूक्ष्म रोगाणुओं के परिग्रहण में
सहायता करते हैं। - मास्ट कोशिकाएँ- जो हिपेरिन का स्त्राव करती हैं (हिपेरिन रूधिर स्कंदन में मदद
करता हैं)।
वसीय ऊतक
इसमें एक विशिष्ट प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं जिनमें वसा संचयित
रहती हैं इसीलिए इन्हें वसा-कोशिकाएँ कहते हैं। वसा कोशिकाएँ आंतरिका अंगों के चारों
तरफ गद्दीदार पट्टी बना देती हैं।
रेशीय ऊतक
यह मुख्यत: फाइबा्रेब्लास्ट का बना होता है। यह ऊतक स्नायु एवं
कंड़रा बनाता हैं।
तरल योजी ऊतक
रूधिर को दो संघटक होते हैं रूधिर कोशिकाएँ और प्लाज्मा। प्लाज्मा इसकी आधात्री का
कार्य करता हैं –
रूधिर कोशिकाएँ-
- लाल रूधिर कोशिकाएँ (रक्ताण)ु – O2 और CO2 का परिवहलन कारती हैं
- सफेद रूधिर कोशिकाएँ (श्वेताणु)- जीवाणुओं, विषाणुओं औंर शरीर के भीतर घुसने वाले
अन्य रोगाणुओं के विरूद्ध रक्षा करते हैं। - विम्बाणु (थ्रोम्बोसाइट)-रूधिर-स्कंदन में मदद करते है।
लसीका आधात्री का कोशिकावाहन तरल हैं, अर्थात भरण पदार्थ हैं। इसमें अनेक
प्रकार की प्रोटीन उपस्थित होती हैं, जैसे फ्राइब्रिनोजन, ऐल्बुमिन, ग्लोब्यूलिन, जिन्हें वह
विभिन्न कार्यो के लिए प्राणी शरीर के अलग-अलग भागों तक पहंॅुचाती हैं।
पेशीय ऊतक
पेशीय ऊतक लंबी उत्तेजनशील कोशिकाओं का बना होता हैं, जिनमें प्रोटीनों के
अनेक समांतर रूप से व्यवस्थित संकुचनशील सूक्ष्म तंतु होते हैं, जैसे एक्टिन, मायोसिन,
ट्रोपोनिन और ट्रोपोमायसिन। अपनी लंबी आकृति के लिए पेशी कोशिकाओं को पेशी रेशे भी
कहते हैं। अपनी आकृति और कार्यो के आधार पर कोशेरूकी प्राणियों के पेशीय ऊतक तीन
प्रकार के होते हैं –
- रेखित,
- अरेखित और
- हृदयक पेशी।
पेशीय ऊतकों के प्रकार-
रेखित/ऐच्छिक/कंकाली | पेशी अरेखित/अनेैच्छिक पेशी | हृदयक पेशी स्थान |
---|---|---|
ककाल पर लगी होती हैं, जैसे कि सिर हाथ-जैंर, चेहरे आदि की पेशियॉ। |
शरीर के अगो जैसे अमाशय, आंत्र आदि की भित्तियां में। |
हृदय की भित्तियां में। |
आकृति | ||
लंबी, बेलनाकार, अशाखित रेशे पेशीरेशक (मायोफाइबिल) कोशिकाद्रव्य में इस प्रकार व्यवस्थित होते हैं कि रेखाएॅं नजर आती है। |
तर्मु जैसी, शंड़ाकरा चॅंकि पेशी रेशक समान रूप स व्यवस्थित नहीं होते, इसलिए रेखाएॅं दिखाई नहींदेती। |
लंबी, बेलनाकार रेखाएॅं (धारिया) दिखाई देती है। |
पेशीचोल (सोर्कोलेमा) | ||
रेशे कोशिका की पतली किंतु कठोर झिल्ली केन्द्रक बहुकेंदक्रीय, परिधीय |
पतली कोशिका-झिल्ली, पेशीचोल नही होता। एक केन्द्रक में स्थित |
पतली
पत््रयेक इकाई में एक केंदक्र |
रूधिर संचरण | ||
प्रचुर अंतनिविशित ड़िस्के नहीं होती ऐच्छिक (संकुचन इच्छा पर) |
कम
नहीं होती |
प्रचुर
होती हैं |
पेशी रेशों के कुछ विशिष्ट लक्षण ये हैं-
- उत्तेजनशीलता (उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया)।
- तनन शक्ति उपस्थित (विस्तार)।
- संकुचनशीलता (संकुचन)।
- प्रत्यास्थता (वापस उपनी मूल स्थिति में पहुंच जाते हैं)।
तंत्रिकीय ऊतक
तंत्रिकीय ऊतक में दो प्रकार की कोशिकाएँ-न्यूरान [Neuron] और न्यूरोग्लिया
कोशिकाएँ [Neuroglia]।
न्यूरॉन –न्यूरॉन तंत्रिकीय ऊतक की एक कार्यात्मक इकाई हैं। न्यूरॉनों को तंत्रिका-कोशिकाएँ
भी कहते हैं। तंत्रिकीय ऊतक मस्तिष्क मेरूरज्जु तंत्रिकाओं से, सवेंदी कोशिकाएँ और
ज्ञानेद्रिया बनाता हैं।
शरीर की अन्य कोशिकाओं जाति, न्यूरानॅ में एक प्रमुख कोशिका काय होती है।
जिसे साइटानॅ [Cytone] कहते हैं। साइटॉन से अनेक प्रकार के पूर्वार्ध निकले होते हैं-
जिनमें से एक प्रवर्ध आमतौर से बहुत लंबा होता है। इस लबें रेशे को एक्सॉन कहते है।
साइटॉन के अपेक्षाकृत छोटे किंतु शाखित प्रवर्धो को डेंड्राइट [dendritesa] यह कोशिका
प्लाज्मा-झिल्ली से घिरी हुई होती हैं, इसमें एक केंद्रक होता हैं तथा अन्य अंगक जैसे
माइटोकॉण्ड्रिया, आदि मौजूद होते हैं।
साइटोन में गहरे रंग की कणिकाए भी उपस्थित होती हैं जिन्हें निस्सल पिंड कहते
हैं। ये पिंड RNA और प्रोटीन के बने होते हैं।
तंत्रिका आवेश का प्रेषण: शाखित दु्रमिकाए उद्दीपन प्राप्त करती हैं और उसे साइटोन
के जरिए ऐक्सॉन तक पे्रषित कर देती है। ऐक्सॉन उसे अंतत: अपने विविध रूप में शाखित
सिरों के जरिए या तो पेशी तक (ताकि वह सकुंचित हो सके) अथवा किसी ग्रंथि तक (ताकि
वह स्त्रवण कर सके) भेज देता है। एक्ेसॉन मिलकर तंत्रिका-रेशा बनाते है।
तंत्रिका रेशा के ऊपर कुछ स्थानों पर तो एक अतिरिक्त आच्छद होता हैं जिसे
मज्जा आच्छद कहते हैं इसका स्त्राव आच्छद कोशिकाएँ करती हैं। यह आच्छद लिपिड़
जैसे पदार्थ मायलिन का बना होता हैं। तदानुसार तंत्रिका-रेशा आच्छादित अथवा
अनाच्छादित कहलाता हैं। मज्जा आच्छद अविच्छिन्न नही होता, बल्कि रेन्वियर पवर्सधियों
पर मज्जा-आच्छद नहीं होता।