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ऊर्जा के स्रोत |
सामान्य अर्थ में हम यह कहते हैं कि कोई भी वस्तु जिससे कि उपयोग में लाई जाने वाली ऊर्जा
का हम दोहन कर सकते हैं, वह ऊर्जा का स्रोत है। ऐसे विविध स्रोत हैं जो हमें विभिन्न कार्यों
के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। आप कोयला, पेट्रोल, डीजल, केरोसीन और प्राकृतिक गैस से परिचित
होंगे। इसी प्रकार आपने जल-विद्युत ऊर्जा, पवन चक्कियों, सौर पेनलों, जैवभार आदि के बारे
में भी सुना होगा।
हम देखते हैं कि ऊर्जा के कुछ स्रोतों की एक लघु समय अवधि के बाद पुन: पूर्ति की
जा सकती है। इस प्रकार के ऊर्जा के स्रोतों को ‘‘नवीकरणीय’’ ऊर्जा स्रोत ऊर्जा कहते हैं, जबकि
ऊर्जा के वे स्रोत लघु समय अवधि के अंदर जिनकी पुन: पूर्ति नहीं की जा सकती है ‘‘अनवीकरणीय
ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं। इस प्रकार ऊर्जा के सभी स्रोतों को हम दो भागों में बाँट सकते हैं- नवीकरणीय व अनवीकरणीय।
ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत
आप जानते ही हैं कि कच्चे तेल से प्राप्त होने वाले पेट्रोल और डीजल को कार, बस, ट्रक, ट्रेन,
विमानों आदि को चलाने में काम में लाया जाता है। इसी प्रकार केरोसीन व प्राकृतिक गैस को
लैम्प व स्टोवों आदि में ईधन के रूप में काम में लाया जाता है। आपको जानना चाहिए कि कच्चा
तेल, कोयला व प्राकृतिक गैस सीमित मात्रा में ही उपलब्ध हैं। इनकी पुन: पूर्ति नहीं की जा
सकती है या इनका बार-बार प्रयोग नहीं किया जा सकता है। अत: ये ऊर्जा के ‘अनवीकरणीय
स्रोत’ कहलाते हैं।
यह सच है कि वर्तमान में हम हमारे उपयोग के लिए ऊर्जा का अधिकांश हिस्सा अनवीकरणीय
स्रोतों से ही प्राप्त कर रहे हैं जिनमें जीवाश्म ईधन, जैसे कि कोयला, कच्चा तेल और प्राकृतिक
गैस शामिल हैं। वर्तमान और भविष्य की ऊर्जा की हमारी आवश्यकताओं को देखते हुए यह
अपेक्षा की जा रही है कि (यदि कोई नए तेलकूप नहीं मिले) तो आगे आने वाले 30-35 सालों
में तेल और प्राकृतिक गैस के भण्डार समाप्त हो जाएँगे। इसी प्रकार कोयले के भंडार अधिक
से अधिक और 100 वर्षों तक चल पाएँगे। अत: हमें ऊर्जा के इन अनवीकरणीय स्रोतों का उपयोग
बहुत ही विवेकपूर्ण तरीके से करना चाहिए और इनकी बर्बादी को रोकना चाहिए।
प्राकृतिक यूरेनियम जैसे रेडियोधर्मी तत्व भी अनवीकरणीय स्रोतों में से एक है। जब यूरेनियम
के परमाणु दो या अधिक खंडों में विभक्त होते हैं तो अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है
जो विद्युत ऊर्जा के उत्पादन में उपयोग में लाई जा सकती है।
कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईधन ऊर्जा के बहुत महत्वपूर्ण अनवीकरणीय स्रोतों
में से हैं। मानव सभ्यता के ऊषाकाल से लेकर अब तक हम जीवाश्म ईधन का उपयोग ऊष्मा,
प्रकाश व विद्युत आदि के उत्पादन के लिए करते आए हैं। ये प्राथमिक स्रोत हैं जिनसे आज
विश्व में विद्युत ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। हमारी जरूरत का लगभग 85% भाग जीवाश्म
ईधनों के दहन द्वारा पूरा किया जाता है। इन ईधनों का प्रमुख घटक कार्बन होता है। जीवाश्म
ईधन हमारे यातायात की आवश्यकताओं के लिए बहुत उपयोगी ऊर्जा के स्रोत हैं। आपको यह
जानकर आश्चर्य होगा कि एक साल की विद्युत आपूर्ति के लिए विश्व भर में लगभग 1.9 अरब
टन कोयला जलाया जाता है। जीवाश्म ईधनों में बहुत बड़ी मात्रा में रासायनिक ऊर्जा संचित
रहती है। यह संचित ऊर्जा अन्य रूपों, जैसे कि ऊष्मा, प्रकाश और यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित
होती है।
अब आपको यह जानने में रुचि बढ़ रही होगी कि जीवाश्म ईधनों का निर्माण कैसे होता है?
अरबों खरबों साल पहले पौधों और जीवों के अवशेष भूमि के नीचे दब गए। साल दर साल
पृथ्वी के क्रोड के ताप तथा मिट्टी एवं चट्टानों के दाब के कारण यह दबे हुए अपघटित कार्बनिक
पदार्थ जीवाश्म ईधन के रूप में परिवर्तित हो गए।
1. कोयला –
कोयलों का निर्माण भी अन्य जीवाश्म ईधनों की तरह होता है। परन्तु इसके निर्माण की प्रक्रिया
‘‘कोयलाभवन’’ (कोलिफिकेशन) के द्वारा होती है। उच्च ताप व दाब की स्थिति में अपघटित
पादप पदार्थों द्वारा कोयला बनता है, हालाँकि इस प्रक्रिया में दूसरे ईधनों के निर्माण की अपेक्षाकृत
कम समय लगता है। कोयला का संघटन एकसार नहीं होता है; यह क्षेत्र के अनुसार बदलता
है। कोयले के संघटन को प्रभावित करने वाले कारकों में पादप पदार्थ का संघटन और कितने
दिनों तक वह अपघटन की प्रक्रिया में रहा, प्रमुख कारक है।
कोयले भी कई प्रकार के होते हैं जैसे कि पीट, लिग्नाइट, उप-बिटुमेनी और बिटुमेनी। पहली प्रकार
का कोयला पीट कोयला है जो मृत व अपघटित पादप पदार्थों का संग्रह मात्र है। विगत काल
में पीट को लकड़ी के विकल्प के रूप में ईधन की तरह प्रयोग किया जाता था। पीट धीरे-धीरे लिग्नाइट
में रूपान्तरित हो जाता है। यह भूरे रंग की चट्टानों के रूप में मिलता है जिसमें कि पादप पदार्थों
को भी पहचाना जा सकता है और इसका कैलोरी मान तुलनात्मक रूप से थोड़ा कम होता है। मुख्यतया
पीट से कोयला बनने की अवस्था में लिग्नाइट बीच की अवस्था में आता है। इसके बाद की अवस्था
उप-बिटुमेनी अवस्था है, जो हल्के काले रंग की संरचना होती है और जिसमें बहुत कम दृश्य
पादप पदार्थ होता है। इस प्रकार के कोयले का कैलोरी मान आदर्श कैलोरी मान से कम होता है।
बिटुमेनी कोयला सर्वोत्तम प्रकार का कोयला है। यह एकदम काला, बहुत सघन और भंगुर होता
है। इस प्रकार के कोयला का कैलोरी मान सर्वाधिक होता है।
2. प्राकृतिक गैस –
हमारे देश में प्राकृतिक गैसें ऊर्जा का एक अन्य मुख्य स्रोत हैं। अंटार्कटिका द्वीप को छोड़कर
पृथ्वी के बाकी कई स्थानों पर तेल व गैस क्षेत्र पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में कुछ मात्रा में गैस
उपस्थित रहती है, परन्तु प्राकृतिक गैस (मीथेन) को बनने में इतना समय नहीं लगता है। भूमि
में अन्य स्रोतों की तरह प्राकृतिक गैस के भी भंडार होते हैं। मीथेन मुख्य रूप से दलदली इलाकों
में पाई जाती है और यह जानवरों की पाचन प्रणाली का एक उप-उत्पाद भी है।
हालाँकि प्राकृतिक गैस एक जीवाश्म ईधन है, यह गैसोलीन से ज्यादा अच्छा ईधन है। परन्तु
यह जलने पर कार्बन डाइऑक्साइड बनाती है जो मुख्य ग्रीन हाउस गैस है। पेट्रोल और डीजल
की तुलना में ज्यादा मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद प्राकृतिक गैस भी सीमित संसाधनों की
श्रेणी में ही आती है।
3. नाभिकीय ऊर्जा –
कुछ तत्व, जैसे कि रेडियम व यूरेनियम परमाणु ऊर्जा विघटन के प्राकृतिक स्रोतों की तरह काम
करते हैं। वास्तव में इन तत्वों के परमाणुओं का स्वत: विघटन होता रहता है जिससे कि परमाणु
के नाभिक का विखंडन होता है।
आइए, देखते हैं कि हम परमाणु से ऊर्जा कैसे
प्राप्त करते हैं। आप जानते हैं कि प्रत्येक परमाणु
के नाभिक में बहुत बड़ी मात्रा में ऊर्जा संचित
रहती है। यूरेनियम जैसे भारी नाभिक को दो हल्के
नाभिकों में विघटित कर परमाणुओं के नाभिक में
संचित ऊर्जा को मुक्त किया जा सकता है। एक
परमाणु के नाभिक का लगभग बराबर द्रव्यमान
के दो नाभिकों में विघटन व साथ में ऊर्जा के
निर्मुक्त होने की प्रक्रिया को नाभिकीय
विखंडन कहते हैं। (प्रत्येक विखंडन में कुछ
द्रव्यमान की क्षति होती है और बदले में बहुत
अधिक मात्रा में ऊर्जा मुक्त होती है जो कि E
= mc2 सूत्र पर आधारित होती है, यहाँ उ लुप्त
द्रव्यमान की मात्रा व c प्रकाश के वेग को सूचित
करता है)। जब एक मुक्त न्यूट्रॉन, यूरेनियम
(235) के नाभिक के साथ सही गति से टकराता
है, तो यह नाभिक द्वारा अवशोषित हो जाता है।
नाभिकीय ऊर्जा अनवीकरणीय है क्योंकि इसको प्राप्त करने के लिए विखंडन अभिक्रिया में जो
यूरेनियम ईधन के रूप में काम में लाया जाता है, उसकी भी पुन: पूर्ति नहीं की जा सकती।
तथापि नाभिकीय ऊर्जा के अनेक उपयोग हैं –
- नाभिकीय संयत्रों में उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से विद्युत का उत्पादन किया जा सकता है।
- नाभिकीय ऊर्जा से जहाज व पनडुब्बियाँ भी चलाई जा सकती है। जो जलयान नाभिकीय
ऊर्जा से संचालित होते हैं उनमें एक बार के ईधन से ही लम्बी दूरियाँ तय की जा सकती
हैं। - नाभिकीय अभिक्रियाओं में उप-उत्पाद के रूप में बनने वाले रेडियोधर्मी पदार्थ चिकित्सा,
कृषि व शोध में काम आते हैं।
2. नाभिकीय ऊर्जा से खतरे – एक तरफ तो नाभिकीय ऊर्जा को हम जीवाश्म ईधनों के विकल्प के रूप में देख सकते हैं परन्तु
यह खतरों से भरी भी हो सकती है। नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में नाभिकीय विकिरण और
रेडियोधर्मी अपशिष्ट ये दो मुख्य खतरे होते है। आइए, इनके बारे में थोड़ी और जानकारी प्राप्त
करें।
- नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन की प्रक्रिया में हानिकारक नाभिकीय विकिरण भी उत्पन्न होती
है। कभी दुर्घटनावश इन विकिरणों का रिसाव हो जाने पर ये मानव शरीर में प्रवेश कर कोशिकाओं
को अपूरणीय क्षति पहुँचा सकती हैं। इस तरह की दुर्घटनाओं से बचाव के लिए ही नाभिकीय
संयत्रों को चारों तरफ से इस प्रकार के विकिरणों को अवशोषित करने वाले पदार्थों, जैसे
कि लेड की मोटी परतों से ढका जाता है। परन्तु यदि ये विकिरण दुर्घटनावश वातावरण में
फैल जाएं तो आस-पास रहने वाले लोगों के लिए ये लगातार खतरा बन सकती हैं। शायद
आप लोगों को इस तरह की दो घटनाओं के बारे में पता हो- संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की
थ्री माइल आईलैंड तथा तत्कालीन सोवियत संघ की चेरनोबिल नाभिकीय दुर्घटना। इन दोनों
दुर्घटनाओं में विकिरणों के वातावरण में फैलने से बहुत भारी नुकसान हुआ था जिनका अभी
तक पूरा आकलन नहीं हो पाया है। - दूसरा खतरा नाभिकीय विखंडन की प्रक्रिया में निकलने वाले अपशिष्ट, मुख्य रूप से प्रयोग
हो चुके ईधन के निपटान से सम्बन्धित है। नाभिकीय अभिक्रियाओं से नाभिकीय विकरणों
को उत्सर्जित करने वाले अनेक हानिकारक पदार्थों का निर्माण होता है। इन्हें नाभिकीय अपशिष्ट
कहते हैं। वर्तमान में नाभिकीय संयंत्रों में जितना भी अपशिष्ट बन रहा है उन्हें लेड के मजबूत
पात्रों में भूमि के नीचे संग्रहित किया जा रहा है। इस तरह के अपशिष्ट के निपटान का
कोई अधिक संतोषजनक व सुरक्षित तरीका हम अब तक खोज नहीं पाए हैं।
ऊर्जा के अनवीकरणीय स्रोत
जब इन अनवीकरणीय संसाधनों के भंडार पूरी तरह से समाप्त हो जाएँगे तब क्या
होगा? जीवाश्म ईधनों से पर्यावरण को होने वाली क्षति की ओर भी हमें ध्यान देना होगा।
इन समस्या का हल ऊर्जा के अन्य वैकल्पिक स्रोतों तथा पर्यावरण-अनुकूल प्राकृतिक ईधनों के
प्रयोग से हो सकता है। ऊर्जा के अनेक वैकल्पिक और नवीकरणीय स्रोत उपलब्ध हैं। जो न
केवल पर्यावरण-अनुकूल हैं बल्कि प्रचुरता से उपलब्ध भी हैं। जल, पवन, सूर्य का प्रकाश, भूतापीय,
समुद्री तरंगें, हाइड्रोजन व जैवभार आदि ऐसे ही कुछ संभावित ऊर्जा के स्रोत हैं। नवीकरणीय
होने के अलावा और भी कुछ कारणों से हमें ऊर्जा के ऐसे स्रोतों की ओर जाना होगा।
1. सूर्य –
सूर्य हमें लाखों-करोड़ों वर्षों से प्रकाश और ऊष्मा दे रहा है और यह माना जाता है कि आगे
आने वाले अरबों साल तक हमें सूर्य से प्रकाश और ऊष्मा मिलती रहेगी। सभी पौधे सूर्य और
सभी जन्तु पौधों से ही ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इसलिए
यह कहा जा सकता है कि जन्तुओं के लिए भी ऊर्जा
का स्रोत सूर्य ही है। यहाँ तक कि मक्खन, दूध व
अंडों में भी जो ऊर्जा होती है वह सूर्य से ही आती
है। ऐसा क्यों कहा जाता है? वास्तव में सूर्य सभी
जीवों के लिए ऊर्जा का मूल स्रोत है। नाभिकीय ऊर्जा
को छोड़कर ऊर्जा के अन्य सभी रूप सौर ऊर्जा के
ही परिणाम हैं। यह कहा जाता है कि जीवाश्म ईधन,
जैव ईधन तथा प्राकृतिक गैसें आदि सौर ऊर्जा के
ही संग्रहित रूप हैं। पवन और नदियां, जिनसे
नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है, वे भी सौर
ऊर्जा के ही परिणाम हैं। क्या आप सोच सकते हैं
ऐसा कैसे है?
भविष्य के लिए सूर्य एक सबसे सशक्त नवीकरणीय ऊर्जा का स्रोत है। जब तक सूर्य का अस्तित्व
है हम इससे लगातार ऊर्जा प्राप्त करते रहेंगे। सूर्य की विकिरणों का लगभग 30: भाग वातावरण
की ऊपरी परतों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। शेष समुद्र, बादल व जमीन द्वारा अवशोषित
कर लिया जाता है।
सौर ऊर्जा का उपयोग खाना पकाने, ऊष्मा प्राप्त करने, विद्युत ऊर्जा के उत्पादन और समुद्री जल
के अलवणीकरण में किया जाता है। सौर सेलों की मदद से सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदला
जाता है। सौर ऊर्जा का सर्वाधिक उपयोग पानी गर्म करने वाली प्रणालियों में होता है। इनके
अलावा सौर ऊर्जा का उपयोग वाहनों को चलाने, विद्युत उत्पादन, रात में सड़कों की प्रकाशित
करने तथा भोजन पकाने में भी किया जाता है। छोटे स्तर पर सौर ऊर्जा का उपयोग घरों के
दैनिक उपयोग के लिए तथा स्वीमिंग पूल के लिए भी पानी को गर्म करने में किया जाता है।
बड़े स्तर पर, सौर ऊर्जा से मोटरकार, विद्युत संयत्र और अंतरिक्ष यान आदि चलाए जाते हैं।
2. पवन ऊर्जा –
ऊर्जा का एक अन्य वैकल्पिक स्रोत पवन ऊर्जा है जिसमें भी
नुकसान पहुँचाने वाले उप-उत्पादों का निर्माण नहीं होता है।
सौर ऊर्जा की तरह पवन ऊर्जा का दोहन भी मौसम और
पवनचक्की लगाए जाने के स्थान पर निर्भर करता है। परन्तु,
यह सबसे प्राचीन और स्वच्छ ऊर्जा का स्रोत है तथा नवीकरणीय
ऊर्जा स्रोतों में सर्वाधिक विकसित है। पवनचक्की में विशाल
परिमाण में ऊर्जा उत्पादन करने की क्षमता होती है।
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पवन चक्की |
आपने फिरकी तो देखी ही होगी। इसे विडंवेन भी कहते हैं।
जब आप फिरकी की पंखुड़ियों पर फूंक मारते हो तो क्या होता
है? यह घूमने लग जाती है। फिरकी की मदद से आप आसानी
से अनुभव कर सकते हैं कि पवन हमें ऊर्जा प्रदान करती है।
3. जल विद्युत ऊर्जा –
पवन ऊर्जा की तरह ही बहता हुआ पानी और विशाल बांधों में भरा पानी भी ऊर्जा का महत्त्वपूर्ण
स्रोत है, जिसे जल विद्युत ऊर्जा कहते हैं। परन्तु अति-विकास और जल शक्ति का अंधाधुंध दोहन
स्थानीय पर्यावरण व आवासीय क्षेत्रों पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है।
4. भूतापीय ऊर्जा –
भूतापीय ऊर्जा एक अन्य वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत है जिसको कि पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा से प्राप्त
किया जाता है। वास्तव में यह ऊष्मा प्राप्त करने के प्राकृतिक स्रोतों के बहुत पुराने तरीकों में
से एक है। यह रोमन काल जितना पुराना है जब आग की बजाय पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा
का प्रयोग घरों को गर्म रखने तथा/अथवा नहाने के लिए पानी को गर्म करने में किया जाता
था। वर्तमान में पृथ्वी की इस आंतरिक ऊष्मा का प्रयोग विद्युत के उत्पादन में मुख्यत: उन क्षेत्रों
में, जहाँ विवर्तिक प्लेटों की गति देखने को मिलती है, किया जा रहा है।
अब हमारे सामने मूल प्रश्न यह है कि भूतापीय ऊर्जा को प्राप्त किया जाए? आपने पृथ्वी पर
पाए जाने वाले ज्वालामुखियों के बारे में सुना होगा। इन ज्वालामुखी लक्षणों को भूतापीय ऊर्जा
के बाहुल्य क्षेत्र कहा जाता है। ऊर्जा का बाहुल्य क्षेत्र वह क्षेत्र है जहाँ पर पृथ्वी के प्रावार की
मोटाई कम होती है। इस कारण पृथ्वी की अतिरिक्त आंतरिक ऊष्मा बाह्य पर्पटी की ओर प्रवाहित
होने लगती है। ये बाहुल्य क्षेत्र पृथ्वी के पृष्ठ पर अपने अद्भुत प्रभावों के कारण जाने जाते हैं,
जैसे कि ज्वालामुखी द्वीप, खनिजों के भंडार और गर्म पानी के सोते आदि। इन भूतापीय ऊर्जा
बाहुल्य क्षेत्रों की ऊष्मा से भूमि के अन्दर का पानी वाष्प में परिवर्तित हो जाता है जिसका उपयोग
वाष्प टरबाइन को चलाकर विद्युत उत्पादन के लिए किया जा सकता है।
5. महासागर – ऊर्जा का एक स्रोत –
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि महासागर भी एक सशक्त नवीनीकरणीय ऊर्जा का स्रोत
है। महासागर की ऊर्जा को हम तीन तरीकों से इस्तेमाल कर सकते हैं : तरंगों की ऊर्जा, ज्वारीय
ऊर्जा तथा महासागरीय जल के ताप में अंतर का उपयोग करके।
6. जैवभार से ऊर्जा उत्पादन –
जैवभार पौधों और जन्तुओं से बनने वाला कार्बनिक पदार्थ है। इसमें कूड़ा
करकट, कृषि अपशिष्ट, औद्योगिक अपशिष्ट, खाद, लकड़ी, जीवों के मृत भाग आदि शामिल
हैं। ऊर्जा के अन्य स्रोतों की तरह जैवभार में भी सूर्य से प्राप्त ऊर्जा संचित होती है। अत: जैवभार
भी ऊर्जा के अच्छे स्रोतों में से है।
क्या आपको पता है कि जैवभार में सूर्य की ऊर्जा किस प्रकार आती है? आपको यह तो पता
ही होगा कि पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सूर्य के प्रकाश का अवशोषण करते हैं। पौधों
में इस ऊर्जा से उनका भोजन बनता है। जब जन्तु व मानव इन पौधों को खाते हैं तो भोजन
के रूप में संचित रासायनिक ऊर्जा का रूपांतरण होता है। जब जैवभार को जलाया जाता है
तो इसमें संचित रासायनिक ऊर्जा ऊष्मीय ऊर्जा में बदलती है। जैवभार से मिलने वाली ऊष्मीय
ऊर्जा का उपयोग घरों व कारखानों में ऊष्मा की प्राप्ति के लिए और विद्युत उत्पादन के लिए
भी किया जा सकता है। अब तक आप यह जान गए होंगे कि किसी भी प्रकार के ईधन को
जलाने पर हानिकारक उत्पाद बनते हैं। ऐसी स्थिति में जैवभार कैसे ऊर्जा का एक अच्छा स्रोत
हो सकता है? तो क्या हम जैवभार को बिना जलाए भी ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं?
हाँ। जैवभार को जलाकर ऊर्जा प्राप्त करने के अलावा और भी तरीके हैं जिससे ऊर्जा प्राप्त की
जा सकती है। जैवभार को ऊर्जा के अन्य उपयोगी रूपों, जैसे बायोगैस या मीथेन, इथेनॉल और
बायोडीजल में परिवर्तित किया जा सकता है। आपने पहले भी पढ़ा है कि मीथेन प्राकृतिक गैस
का भी एक मुख्य घटक है। कचरे, कृषि अपशिष्ट और मानव अपशिष्ट से भी जो गैस निकलती
है वह मीथेन गैस ही है। इसे ‘‘लैंडफिल गैस’’ या ‘‘बायोगैस’’ भी कहते हैं। द्रवित पेट्रोलियम
गैस ;स्च्ळद्ध की तरह बायोगैस का उपयोग भी रोशनी व खाना पकाने में किया जाता है।
बचे-खुचे भोज्य पदार्थों, जैसे कि सब्जियाँ, तेल व जन्तु वसा आदि से बायोगैस व बायो डीज़ल
जैसे जैव ईधन प्राप्त किए जा सकते हैं। जैव ईधन मुख्य रूप से दो तरीकों द्वारा बनाया जाता
है। पहले तरीके में शर्करा या स्टॉर्चयुक्त फसलों की बड़े पैमाने पर खेती की जाती है और प्राप्त
फसल का किण्वन किया जाता है ताकि इथाइल एल्कोहॉल/एथेनॉल बन सके। मक्का, चुकन्दर,
गन्ना, सोयाबीन, गेहूँ आदि का एथेनॉल बनाने में उपयोग किया जाता है। पेट्रोल से चलने वाले
इंजनों में एथेनॉल को एक वैकल्पिक ईधन के रूप में देखा जा सकता है। परन्तु एथेनॉल बहुत
ही संक्षारक पदार्थ है, अत: इससे इंजन के विभिन्न भागों को क्षति पहुँच सकती है। इसका दूसरा
उपाय यह है कि एथेनॉल व पेट्रोल के मिश्रण का उपयोग किया जाए। दूसरे तरीके में उन पौधों,
जिनमें वनस्पति तेल की मात्रा अधिक होती है, को उगाया जाता है। तत्पश्चात् इस वनस्पति
तेल से जैव ईधन का उत्पादन किया जाता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि जैवभार का उपयोग ऊर्जा के स्रोत में तीन तरीकों द्वारा
किया जा सकता है –
- शुष्क जैवभार के सीधे दहन से ताप या वाष्प की प्राप्ति द्वारा।
- ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैवभार के विघटन से मीथेन गैस के उत्पादन द्वारा।
- वनस्पति तेल की अधिकता वाले पौधों से बायो डीज़ल के उत्पादन द्वारा।
7. हाइड्रोजन – भविष्य के ऊर्जा का स्रोत –
हाइड्रोजन को भविष्य के एक पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा स्रोत के रूप में देखा जा रहा है। दीर्घकालीन
अवधि में हाइड्रोजन में ऊर्जा के पारंपरिक स्रोतों, जैसे कि पेट्रोल, डीजल, कोयला आदि पर निर्भरता
को कम करने की सम्भावना दिखाई देती है। इसके अलावा ऊर्जा स्रोत के रूप में हाइड्रोजन का
उपयोग ग्रीन हाउस गैसों व अन्य प्रदूषक के उत्सर्जन को कम करने में मदद करेगा।
जब हाइड्रोजन का दहन किया जाता है तो केवल जल वाष्प ही उत्पन्न होती है। अत: हाइड्रोजन
को उपयोग में लेने का एक मुख्य लाभ यह है कि जब इसको जलाया जाता है कार्बन डाइऑक्साइड
नहीं बनती है। अत: हम कह सकते हैं कि हाइड्रोजन हवा को प्रदूषित नहीं करती है। हाइड्रोजन
में एक ईधन-सेल वाले इंजन को एक आंतरिक दहन इंजन की तुलना में अधिक दक्षता से चलाने
की क्षमता होती है। गेसोलीन से चलने वाली कार की तुलना में ईधन-सेल वाली कार को उसी
परिमाण की हाइड्रोजन दुगनी दूरी तक चला सकती है।
यद्यपि ईधन-सेल वाले वाहनों को चलाने के लिए हाइड्रोजन एक व्यवहार्य ऊर्जा स्रोत सिद्ध हुआ
है परन्तु हाइड्रोजन के उत्पादन, संग्रहण और वितरण को लेकर कई गंभीर प्रश्नचिन्ह हैं। इसकी
दक्षता को लेकर भी प्रश्न चिà हैं कि इसके निर्माण में उससे अधिक ऊर्जा व्यय हो जाती है जितनी
कि यह उत्पन्न करती है। इसके अलावा हाइड्रोजन से एक वाहन को चलाने में बहुत लागत आती
है क्योंकि हाइड्रोजन को द्रवित करने में बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
ब्रह्माण्ड में हाइड्रोजन सर्वाधिक प्रचुरता से पाया जाने वाला तत्व है। यह सबसे हल्का तत्व
है और सामान्य ताप व दाब पर यह गैस रूप में होता है। पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप में हाइड्रोजन
गैस रूप में नहीं पाई जाती क्योंकि वायु से हल्की होने के कारण यह वातावरण में ऊपर उठ
जाती है। प्राकृतिक हाइड्रोजन हमेशा अन्य तत्वों के साथ यौगिक, जैसे कि पानी, कोयला
और पेट्रोलियम, के रूप में रहती है।