कारण वह कुंठित रहने लगता है। कुंठा का अर्थ हताशा और निराशा है। कुंठा का प्रमुख
कारण मूल्यों का विघटन माना जाता है। ‘कुंठा’ को अंग्रेजी में ‘Frustration’ भी कहा
जाता है।
कुंठा का शिकार प्रत्येक उम्र के व्यक्ति हैं। हर उम्र की कुंठा
अलग-अलग होती है। कुंठा के कारण जब मानव ज्यादा तनाव सह नही पाता है तो जीवन
की कशमकश तले टूटकर वे गहरे अवसाद से घिर जाते हैं।
समय के अभाव
में ज्यादातर डॉक्टर मरीज के मन के अवसाद को समझ नहीं पाते हैं। वह मरीज को
सांत्वना देने के लिए विटामिन, खून बनाने वाले टॉनिक, कैल्शियम और निम्न रक्तचाप
और उच्च रक्तचाप दूर करने वाले नुस्खे बता देते हैं। कुंठाग्रस्त रोगी को तन की नहीं
मन की दवा की जरूरत होती है। लोगों को कहते भी सुना जाता है कि डॉक्टर ने उन्हैं
हाई ब्लड प्रैशर की हर रोज एक गोली लेने को कहा है। वर्तमान युग में मानव के जीवन
में इतनी भागदौड़ है कि वह अपने लिए समय नहीं निकाल पाता है। संबंध अर्थ केन्द्रित
हो गए हैं।
कुंठा से ग्रस्त किसी भी उम्र में, कोइ्र भी व्यक्ति हो सकता है। कुंठित रहने से ही
अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती है। अवसाद के विषय में डॉ0 यतीश अग्रवाल लिखते हैं-
डिप्रैशन (अवसाद) एक तरह मन की अवस्था है जीवन में निराशाओं, दु:खों, कठिन क्षणों
या किसी हादसे के दौरान मन का उदास होना लाजिमी है पर जब यह उदासी
वजह-बेवजह मन की गहराइ्रयों में उतर जाती है और उस पर इस कदर घर कर जाती है
कुछ अच्छा नहीं लगता, चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा दिखता है और जीने की चाह नहीं
रहती, इसे ही अवसाद या डिप्रेशन कहा जाता है।’’
कुंठा हर उम्र के लोगों में होती है। जब किसी दूध-पीते बच्चे को अपनी माता का
प्यार नहीं मिलता है तो प्यार न मिल पाना भी कुंठा का कारण है। कई बार इक्कीसवीं
सदी में माताएँ नौकरी अपना रही है और 5 से 8 घंटों तक बच्चे को माँ से अलग रहना
पड़ता है और बच्चे इससे कुंठित रहते है। बच्चा अपनी कुंठा को कई तरह से व्यक्त कर
सकता है। बच्चा तोड़-फोड़ कर सकता है या फिर रोकर भी बच्चा हमेशा जब अपनी
माता से थोड़े समय के लिए भी दूर होता है तो उदास या हताश हो जाता है। यही कुंठा
है।
जब बचपन का पड़ाव पार कर किशोरावस्था की शुरूआत होती है तो बच्चे में
अनेक शरीरिक बदलाव आते हैं तो उन बदलाव के कारण उसे मन में तरह-तरह के
विचार आते हैं। कई बार बच्चे इससे भी कुंठित हो जाते हैं। वयस्क होते ही जीवन के
कड ़वे सच का सामना करना होता है। धन कमाने की चाह या फिर अच्छी नौकरी, अपना
घर मनचाही नौकरी न मिलना, घर-परिवार में आपसी संबंधों का ठीक न होना आदि के
कारण भी मानव कुंठित रहता है।
वर्तमान युग में प्रौढ़ अवस्था के दुख तो न जाने कितने होते हैं। शारीरिक दु:ख
इतने घेर लेते हैं कि मानव इस उम्र में कुंठाग्रस्त रहने लग जाता है। प्रौढ़ अवस्था में
अकेलापन, अजनबीपन झेलना पड़ता है। कई बार डाक्टर जानवरों को पालने की सलाह
देते हैं, क्योंकि इस अवस्था में मनुष्य व्यस्त रहै और तनाव का सामना न करना पड़े। इस
तरह के अवसाद को एक्सोजेनस अवसाद कहते हैं तो परिस्थितिकजन्य होता है। कुछ
रिटायरमेंट के बाद अपने आप को इतना व्यस्त रखते हैं कि कुंठा से मुक्त जीवन जीते हैं।
इस प्रकार प्रत्येक आयु के लोगों को कुंठा का सामना करना पड़ता है। वर्तमान युग
के मनुष्य की तुलना पत्थर के युग के मानव से की जाए तो उस समय मानव पशु के
समान गुफाओं में रहता था। उस वक्त मनुष्य के मन में किसी भी प्रकार के विचार भाव
उत्पन्न नहीं होते थे। मनुष्य स्वार्थ, घृणा, लोभ, द्वेष की भावना से मुक्त था। मानव उस
समय प्राकृतिक जीवन व्यतीत करता था। मानव को किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं था।
परन्तु आज का मानव अपने स्वार्थ के लिए दूसरे मानव से लड़ता है। वर्तमान युग में
मनुष्य के हृदय में एक-दूसरे के प्रति विष उगल रहा है। वर्तमान युग में रिश्ते केवल
दिखावे बनकर रह गए हैं। स्वार्थ, लोभ, अंहकार, घृणा की भावना से मानव का जीवन
भरा हुआ है। जिस कारण वह कुंठित है।
कुंठा की परिभाषा
जब व्यक्ति की आधारभूत आवश्यकताएं पूरी नहीं होती तब वह असंतुष्ट होता है
और इसके फलस्वरूप उसके मन में निराशा या हताशा का उत्पन्न होना स्वाभाविक है।
कुंठा का जन्म सामाजिक बाधाओं के कारण भी होता है। कुंठा का कारण दुर्घटना भी हो
सकती है। कुंठा को परिभाषित इस प्रकार किया जा सकता है।
- साइमन्डस के अनुसार – ‘‘जब कोई आवश्यकता उत्पन्न होती साइमन्डस के अनुसार – है और फिर
उसकी पूर्ति किसी बाधा अथवा रूकावट के कारण नहीं हो पाती, तब इसका
परिणाम कुंठा होता है।’’ - डी.बी. क्लाइन के अनुसार -’’लक्ष्य निर्देशित प्रयास की पूर्ति में बाधा ही कुंठा
है।’’ है।’’ - नरमन केमरन के अनुसार – ‘‘जब हम कुंठा की चर्चा करते हैं तब हमारा
तात्पर्य एक ऐसी स्थिति से है जिसमें कि एक व्यक्ति का अभिप्रेरित व्यवहार
अथवा उसके कार्य की नियोजित रूपरेखा स्थायी अथवा अस्थायी रूप से पूरी
नहीं हो पाती।’’ - जेम्स जी कालमेन :- ने कुंठा की एक सरल परिभाषा इन शब्दों में की है कि
‘‘कुंठा किसी आवश्यकता अथवा इच्छा की पूर्ति का न होना।’’
कुंठा के लक्षण
कुंठा एक मानसिक रोग है। बीमार केवल मनुष्य का शरीर ही नही
होता है। बीमार मनुष्य का मन भी हो सकता है। वर्तमान युग में कुंठा के
कारण मानव का शरीर ही बीमार पड़ सकता है या फिर यह भी कहा जा सकता है। यदि
मानव को कोई शारीरिक बीमारी होती है तो वह कुंठित रहने लगता है। कुंठा के कारण
मनुष्य के अनेक रोग भी हो सकते हैं जैसे उच्च और निम्न ब्लड प्रैसर, हृदयघात, शुगर,
लकवा आदि। कुंठा एक मानसिक रोग है लेकिन मन का सम्बन्ध शरीर से होता है। क्योंकि
स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है। कुंठा के मुख्य लक्षण को देखा जाए तो
कुंठा को मानसिक रोग ही कहा जाएगा। मानसिक रोग का प्रभाव शरीर पर अवश्य पड़ता
है। मानसिक रोगों के मुख्य लक्षण यह होते हैं-
1. मन उदास रहना :- जब व्यक्ति को किसी कारणवश कोई परेशानी का
सामना करना पड ़ता है तो उसका मन उदास रहने लगता है। बच्चे को आजकल अपनी
पढ़ाई के कारण, मनुष्य को कई बार अपने भविष्य में रोजगार की चिन्ता के कारण, बुर्जुगों
को अकेलेपन व अजनबीपन के कारण उदास रहना पड ़ता है। मन उदास रहने के कारण
यह उदासी धीरे-धीरे मनुष्य के अन्दर घर जाती है और वह कुंठित से अपने को
घिरा हुआ पाता है। आजकल भाग-दौड़ की जिन्दगी और स्वार्थपन जीवन ने मानव के मन
को उदास कर दिया है। और यह भी एक मन के रोग का मुख्य लक्षण है।
2. नकारात्मक सोच:– यदि मनुष्य को कुंठा रहती है तो इस मानसिक रोग
के कारण सकारात्मक सोच नही रख पाता है। दूसरे के प्रति नकारात्मक सोच रखता है।
और गलत सोच के कारण वह दूसरों से झगड ़ा भी कर बैठता है। कुंठा से र्गस्त व्यक्ति
कई बार गलतफहमी के कारण मुसीबत में पड़ जाता है।
3. काम में अरुचि :- कुंठा से ग्रस्त व्यक्ति अपने काम में रुचि
नही रखता है। चाहे वह घर हो या फिर दफ्तर सभी जगह वह कुंठा के कारण खोया हुआ
सा लगता है।
4. जिंदगी बेकार लगना :- जिंदगी बेकार लगना भी मानसिक रोग की पहचान
है।
5. भुल्लकड़पन :– जब मानव कोई वस्तु रखकर बार-बार भूल जाता है। वह
ऐसे मानसिक रोग के कारण होता है। भूलने की आदत बुजुर्ग होने या फिर सिर के किसी
हिस्से में चोट लगने से भी होती है। लेकिन वर्तमान में मनुष्य मन के रोगों से त्रस्त है।
सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और पारिवारिक समस्याओं के कारण कुंठित व संत्रस्त
रहता है। इस कारण से भी वह भूलने की आदत का शिकार हो जाता है।
6. आत्मविश्वास की कमी :– कुंठा के कारण आत्मविश्वास में
कमी आना स्वाभाविक है। क्योंकि कुंठा का जन्म किसी इच्छा की पूर्ति न होने के कारण
होता है।
7. उल्टी-सीधी हरकतें या बार-बार हाथ धोना : – मानसिक रूप से बीमार है वह बार-बार हाथ पैर धोता
है।