जी.वी.के. राव समिति का गठन 25 मार्च, 1985 को योजना आयोग द्वारा
किया गया। इस समिति का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्र में विकास एवं गरीबी उन्मूलन
से सम्बन्धित प्रशासनिक व्यवस्था की समीक्षा करना एवं साथ ही पंचायती राज के
अंगों का प्रशासनिक निकायों से सम्बन्ध का अध्ययन करना तथा उचित सिफारिशें
करना था। समिति ने दिसम्बर, 1985 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति ने
पंचायतों की आर्थिक स्थिति, उनके चुनाव और कार्यकलापों पर प्रकाश डालते हुए
यह चिंहित किया कि राज्य सरकारें लोकतांत्रिक विकेन्द्रीयकरण की प्रक्रिया के प्रति
उदासीन रहीं है। अधिकांश राज्यों में पंचायतें शक्ति तथा अधिकार एवं संसाधनों के
अभाव में निष्प्रभावी होती जा रही है। अत: समिति की राय थी कि जिला स्तर पर
महत्वपूर्ण विकेन्द्रीयकरण होना चाहिए।
किया गया। इस समिति का मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्र में विकास एवं गरीबी उन्मूलन
से सम्बन्धित प्रशासनिक व्यवस्था की समीक्षा करना एवं साथ ही पंचायती राज के
अंगों का प्रशासनिक निकायों से सम्बन्ध का अध्ययन करना तथा उचित सिफारिशें
करना था। समिति ने दिसम्बर, 1985 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस समिति ने
पंचायतों की आर्थिक स्थिति, उनके चुनाव और कार्यकलापों पर प्रकाश डालते हुए
यह चिंहित किया कि राज्य सरकारें लोकतांत्रिक विकेन्द्रीयकरण की प्रक्रिया के प्रति
उदासीन रहीं है। अधिकांश राज्यों में पंचायतें शक्ति तथा अधिकार एवं संसाधनों के
अभाव में निष्प्रभावी होती जा रही है। अत: समिति की राय थी कि जिला स्तर पर
महत्वपूर्ण विकेन्द्रीयकरण होना चाहिए।
जी.वी.के. राव समिति की मुख्य सिफारिशें
जी.वी.के राव समिति की मुख्य सिफारिशें थी –
- समिति ने यह महसूस किया कि ग्राम विकास की प्रक्रिया का पुनरावलोकन
करने का समय आ गया है। इसलिए उसने यह सुझाव दिया कि सभी
आर्थिक व सामाजिक विकास प्रक्रियाओं को विभिन्न संस्थाओं के द्वारा
संचालित किया जाय। - योजना तैयार करने, निर्णय लेने व उसे लागू करने का कार्य पंचायतों को
सौंपे जाये क्योंकि वे जनता के अधिक निकट है। - समिति का मत था कि जिला स्तर पर विषेश रूप से विकेन्द्रीयकरण किया
जाना चाहिए। जिला परिषद के सदस्य को 30,000 से 40,000 की जनसंख्या
का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। बैंक, शहरी, स्थानीय स्वायत्त संस्थाओं के
प्रतिनिधि, विधान सभाओं के सदस्य व सांसद भी इनमें सहयोजित होने
चाहिए। समाज के कमजोर वर्ग व महिलाओं का इनमें पर्याप्त प्रतिनिधित्व
होना चाहिए। इनका कार्यकाल आठ वर्श का होना चाहिए। कार्यकाल समाप्तहोते ही तुरन्त चुनाव कराने चाहिए। विषेश परिस्थिति में यदि उनका कार्यकाल
बढ़ाया भी जाये तो वह छह महीने से अधिक नहीं होना चाहिए। - पंचायती राज संस्थाओं को क्रियाशील बनाया जायें एवं पूरी तरह से समर्थित
किया जाये, ताकि यह लोगों की समस्याओं का प्रभावी ढंग से निदान कर
सकें। - जिला स्तर के सभी कार्यालय स्पष्ट रूप से जिला परिशद के अधीन होने
चाहिए। कृशि, पशुपालन, सहकारिता, लघु सिंचाई, प्राथमिक व प्रौढ़ शिक्षा,
लोक स्वास्थ्य, ग्रामीण जलपूर्ति, जिले की सड़कें, लघु और ग्रामोद्योग,
अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति का कल्याण, समाज व महिला
कल्याण और सामाजिक वनपालन जिला परिषदों को दे देना चाहिए। - जिला ही मुख्य रूप से नीति निर्माण तथा कार्यक्रम क्रियाशीलता का केन्द्र
होना चाहिए। इसलिए कार्य सम्पादन के लिए जिला परिषदों की विभिन्न
समितियाँ गठित की जानी चाहिए। इस प्रकार जिला परिषद मुख्य रूप से
ग्राम विकास एवं प्रबन्धन का अंग होना चाहिए और सभी गलतियों का निवारण
इसी स्तर पर होना चाहिए। - राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली धनराषि को निर्धारित करने का काम
वित्त आयोग को दिया जाना चाहिए, जिसकी नियुक्ति हर पाँच साल के बाद
होनी चाहिए। जिला स्तर पर वित्त पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता रहे, इसके
लिए मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में राज्य विकास परिषद का गठन होना चाहिए।
राज्य सरकार में सभी मंत्री व जिला परिषदों के अध्यक्ष इस समिति के सदस्य
होने चाहिए। - कुछ योजनाओं का क्रियान्वयन राज्य स्तर से जिला स्तर पर हस्तांतरित
किया जाए जिससे जिला योजना का विकेन्द्रीयकरण हो सके। - समिति ने यह सिफारिश की थी कि जिला स्तर से नीचे पंचायत समिति या
मण्डल पंचायत भी गठित की जानी चाहिए और इनका गठन व संरचना
जिला परिषद जैसी ही होनी चाहिए। प्रत्येक गाँव में ग्राम सभा होनी चाहिए। - जो विभिन्न समाजसेवी संस्थाएं ग्रामों में कार्य कर रही हैं, पंचायतों को
विभिन्न समितियों के माध्यम से उनकी सेवाएँ लेनी चाहिए। - पंचायत समिति या ग्राम व मण्डल पंचायत स्तर पर बच्चों, महिलाओं व प्रौढ़ो
के कल्याण के लिए उपसमिति का गठन होना चाहिए, जिसके सदस्य
मुख्यतया महिलाएँ होनी चाहिए।
समिति ने विश्वास किया कि विकास शुरू हो और लगातार होता रहे जब तक
कि एक बड़ा जन समुदाय इसमें भाग न ले। समिति ने यह भी महसूस किया कि
ब्लाक विकास कार्यालय ही ग्राम विकास प्रक्रिया और स्थानीय निकायों के चुनाव
की रीढ़ की हड्डी बने। इस प्रकार जी.वी.के. राव समिति ने पंचायतों को
लोकतांत्रिक विकेन्द्रयकरण की संस्थाओं के रूप में जिनकी सिफारिश बलवंत राय
मेहता समिति ने की थी, कारगर बनाने के लिए ठोस सुझाव सरकार को दिये।