ऑक्सीकृत P700 अपने इलेक्ट्रान, प्रकाश तंत्र II
से ग्रहण करता है जबकि प्रकाश तंत्र I के प्राथमिक ग्राही अणु अपने इलेक्ट्रानों का
स्थानांतरण एक अन्य इलेक्ट्रानवाहक NADP द्वारा NADPH
बनाने हेतु करते हैं जो
कि एक प्रबल अपचायक है। इस प्रकार हम देखते है कि जल के अणुओं से इलेक्ट्रानों
का सतत प्रवाह PSII से PSI तथा अंत में छ।क्च् अणु तक होता है जो अपचयित
होकर NADPH
का उपयोग जैवसंश्लेषणात्मक पथ में C
को कार्बोहाइड्रेटस में अपचयित करने में होता है।
जिनका उतपादन इलेक्ट्रान परिवहन श्रृंखला द्वारा होता है। जब उच्च
ऊर्जा युक्त इलेक्ट्रान, इलेक्ट्रान परिवहन तंत्र में निम्न स्तर पर जाते हैं तो
वे ऊर्जा मुक्त करते हैं यह ऊर्जा अकार्बनिक फास्फेट (Pi) को ADP से
जुड़कर ATP बनाती है तथा यह प्रक्रिया फास्फोराइलेशन कहलाती है।
क्योंकि यह प्रकाश की उपस्थिति में होती है। अत: इसे
प्रकाश-फास्फोरिलीकरण कहते है।
यह पर्णहरिम में दो प्रकार से होती है ।
- अचक्रीय-प्रकाश फास्फोराइलेशन: इसमें इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह
जल अणुओं से प्रकाश तंत्र II उसके पश्चात् प्रकाश तंत्र I
तथा अंत में NADP को NADPH2 में अपचयित करते हुए होता
है। क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह दिशाहीन होता है अत: इसे
अचक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण कहते हैं। - प्रकाश फास्फोरिलीकरण : कुछ परिस्थितियों में जब अचक्रीय
प्रकाश फास्फोरिलीकरण रूक जाता है, चक्रीय प्रकाश
फास्फोरिलीकरण होता है तथा यह केवल प्रकाश तंत्र I (PSI) में
होता है। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉन ऑक्सीकृत P700 अभिक्रिया केंद्र
पर वापस आ जाते हैं । इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों के निम्न ऊर्जा स्तर
स्थानांतरण से ATP निर्माण होता है तथा इसे चक्रीय प्रकाश
फास्फोरिलीकरण कहते हैं।
चक्रीय फास्फोरिलीकरण तथा अचक्रीय फास्फोरिलीकरण की तुलना
चक्रीय फास्फोरिलीकरण | अचक्रीय फास्फोरिलीकरण |
---|---|
1. केवल PSI सक्रिय होते हैं । | 1. PSI तथा PSII दोनों सक्रिय होते हैं । |
2. इलेक्ट्रॉन पर्णहरिम अणु से आते हैं तथा वापिस पर्णहरत अणु पर आ जाते हैं । |
2. इलेक्ट्रॉन का स्त्रोत जल है तथा NADP इलेक्ट्रॉन अंतिम ग्राही है । इलेक्ट्रान तंत्र के बाहर चले जाते हैं । |
3. अपचयित NADP (NADPH2) का निर्माण नहीं होता है । |
3. अपचयित NADP अर्थात् NADPH2 का निर्माण होता है जिसका उपयोग CO2 को कार्बोहाइड्रेट में अपचयित करने में होता है |
4. ऑक्सीजन मुक्त नहीं होता है । | 4. ऑक्सीजन उपोपत्पाद के रूप में मुक्त होती है । |
5. यह प्रक्रिया मुख्यत: प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में होती है । |
5. यह मुख्यत: हरे पौधों में होती है । |
चक्रीय फास्फोरिलीकरण द्वारा अतिरिक्त भी बनाए जा सकते हैं। प्रकाश अभिक्रिया की
उर्जा परिवर्तन दक्षता अधिक होती है तथा इसका अनुमानित मान लगभग 39 प्रतिशत
होता है।
जैव संश्लेषणात्मक पथ (अंधकार अभिक्रिया)
प्रकाश अभिक्रिया के दौरान बने एवं कार्बोहाइड्रेट के संश्लेषण के लिए अत्यंत
आवश्यक है।
अभिक्रियाओं की श्रंृखला जो का कार्बोहाइड्रेटस में अपचय उत्पे्ररित करती है
पर्णहरिम के स्ट्रोमा में होती है। इसे कार्बन डाइऑक्साइड का स्थिरीकरण भी कहते हैं।
ये अभिक्रियाएं प्रकाश पर निर्भर नहीं होती है। अत: इनके लिए प्रकाश
आवश्यक नहीं होता है लेकिन ये प्रकाश की उपस्थिति में भी हो सकती है अत: इन्हें
अदीप्त अभिक्रिया या अप्रकाशी अभिक्रिया कहते है।
कार्बन स्थिरीकरण अभिक्रियाओं द्वारा पत्तियों में शर्करा का निर्माण होता है
जहां से पौधे के अन्य भागों में कार्बनिक अणुओं एवं ऊर्जा के रूप में अन्य भागों में
स्थानांतरण कर दिया जाता है जो पौधों की वृद्वि एवं उपापचय के लिए आवश्यक है। CO2 स्थिरीकरण (अदीप्त अभिक्रिया) मुख्यत: दो प्रकार से होती है ।
C3 चक्र केल्विन
चक्र
इस चक्र में, आरंभ में वायुमंडलीय कार्बन शर्करा (रिब्यूलोज बाइ फास्फेट) के
द्वारा ग्रहण की जाती है तथा 3 कार्बन यौगिक के दो अणु, 3-फास्फोग्लिसरिक अम्ल
बनते है। यह तीन कार्बन युक्त अणु इस पथ का प्रथम स्थायी उत्पाद है अत: इसे चक्र
कहते हैं। के निर्माण की प्रक्रिया को कार्बोक्सिलीकरण कहते हैं। यह अभिक्रिया एंजाइम
रिबूलोज बाइफास्फास्फेट कार्बोक्सिलेज द्वारा उत्पे्ररित होती है। यह एंजाइम पृथ्वी पर
संभवतया सबसे अधिक पाया जाने वाला प्रोटीन है।
दूसरे चरण में PGA का 3-कार्बन कार्बोहाइड्रेड जिसे ट्रायोस फास्फेट कहते
हैं मे NADPH2 एवं ATP की सहायता से अपचयन हो जाता है । (प्रकाश अभिक्रिया
में NADPH2 एवं ATP प्राप्त होते हैं) A इनमें से अधिकांश अणु C3 चक्र से निकल
जाते है तथा उनका अन्य कार्बोहाइड्रेट जैसे ग्लूकोज एवं सूक्रोज के संश्लेषण में
इस्तेमाल होता है ।
चक्र को पूरा करने के लिए, प्रारंभिक 5 कार्बन ग्राही अणु, का पुनरूत्पादन
ट्रायोज फास्फेट से अणु के द्वारा होता है तथा पुन: चक्र प्रारंभ हो जाता है ।
C4 चक्र (हैच एवं स्लैक चक्र)
C4 चक्र ऐसे पौधों के लिए जो शुष्क एवं गर्म वातावरण में उगते हैं, एक
अनुकूलन प्रतीत होता है। ऐसे पौधे कार्बन डाइऑक्साइड की अति अल्प मात्रा एवं
स्टोमेटा छिद्रों के आशिंक रूप से बंद होने पर भी प्रकाश संश्लेषण कर सकते है।
ऐसे पौधे जल की अल्पमात्रा, उच्च ताप एवं उच्च प्रकाश में भी तीव्रता से
उग सकते है- गन्ना, मक्का, ज्वार कुछ ऐसे पौधे है।
प्रकाश-श्वसन (RUBP का ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऑक्सीकरण)
इन पौधों में अनुपस्थित होता है। अत: इनमें प्रकाश संश्लेषण की दर उच्च
होती है ।
आकारिकी कहते है। C4 पौधों की पत्तियों की विशेषताएं इस प्रकार है-
- पत्तियों में प्रत्येक संवहनी बंडल के चारो तरफ में दूतक कोशिकाओं
का एक आच्छद होता है जिसे बंडल आच्छद कहते हैं जिसके
कारण इसे कै्रन्ज आकारिकी भी कहते है। - पत्तियों में दो प्रकार के हरितलवक (द्विरूपक हरितलवक) होते है।
- पत्ती की मीसोफिल कोशिकाओं में अपेक्षाकृत छोटे हरितलवक
होते हैं, उनमे सुविकसित ग्रैना भी होते हैं, परंतु इनमें स्टॉर्च
एकत्रित नहीं होता। - बंडल आच्छद की कोशिकाओं के भीतर हरितलवक अपेक्षाकृत बड़े
आकार के होते हैं और उनमें ग्रैना नहीं होते बल्कि उनमें
असंख्य स्टार्च करण होते हैं ।
C4 पौधों में CO2का प्राथमिक ग्राही 3 कार्बन अणुयुक्त, फास्फोइनाल
पायरूबिक अम्ल अथवा PEP होता है । यह फास्फोइनाल पायरूवेट
कार्बोक्सेलेज एन्जाइम की उपस्थिति में CO2 के साथ मिलकर एक चार
कार्बनयुक्त अम्ल, आक्सेलोएसिटिक अम्ल बनाता है । CO2 का यह
स्थिरीकरण मीजोफिल कोशिका के कोशिका द्रव्य में होता है । OAA
इस चक्र का प्रथम चार कार्बन युक्त उत्पाद है अत: इसे C4 पथ भी कहते
है।
OAA मीजोफिल कोशिका से बंडल आच्छद के हरितलवक की ओर
जाता है जहां पर ये CO2 को छोड़ता है। इन कोशिकाओं में C3 कोशिकाओं में चक्र चलाता है तथा CO2 तुरन्त RUBP से जुड़कर C2 चक्र द्वारा शर्करा का निर्माण करती है ।
से जुड़कर C3 चक्र द्वारा शर्करा का निर्माण करती है ।
1. PEPCase जो मीजोफिल कोशिकाओं में पाया जाता है तथा Rubiscoजो बंडल आच्छद कोशिका में पाया जाता है ।
C3 एवं C4 पौधों में अंतर
C3 पौधे | C4 पौधे | |
---|---|---|
CO2 का स्थिरीकरण | एक बार होता है | दो बार होता है, प्रथम बार मीजोफिल कोशिकाओं में तथा दूसरी बार बंडल आच्छद कोशिकाओं में A मीजोफिल कोशिकाओं में |
CO2 ग्राही | RUBP एक 5 कार्बन यौगिक |
(फास्फोइनाल-पायरूविक अम्ल) एक 5-कार्बन यौगिक तथा बंडल आच्छद कोशिकाओं में – RuBP |
CO2 स्थिरीकरण एन्जाइम | RuBP कार्बोक्सिलेज, इसकी दक्षता कम होती है । |
REP कार्बोक्सिलेज की दक्षता अधिक होती हैं क्योंकि CO2 की मात्रा अधिक होती है । |
प्रकाश-संश्लेषण का प्रथम उत्पाद पत्ती संरचना |
एक C3 अम्ल PGA उत्पाद केवल एक प्रकार का हरित लवक होता है । |
एक C4 अम्ल जैसे ऑक्सेलोएसिटिक अम्ल के्रन्ज आकारिकी अर्थात दो प्रकार की कोशिकाएँ जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग हरितलवक होता है। |
प्रकाश-श्वसन
दक्षता |
ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण के लिए सद्मंदक का कार्य करती है। C4 पौधो की अपेक्षा प्रकाश |
अधिक CO2 मात्रा के द्वारा सद्मंदित रहता है इसलिए वायुमंडलीय ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण को सदमंदित नहीं करती है । C3 पौधो की अपेक्षा प्रकाश |
प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले कारण
प्रकश संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले कारकों को मुख्यत: दो भागों
में बाँट सकते है- आंतरिक एवं बाह्य (वातावरणीय) कारक।
1. आंतरिक कारक –
हरितलवक- हरितलवक की मात्रा का प्रकाश संश्लेषण की दर के साथ
सीध संबंध है क्योंकि ये वर्णक प्रकाश ग्राही होता है तथा सूर्य के प्रकाश
को ग्रहण करने के लिए उत्तरदायी होता है।
दर बढ़ती है तथा सर्वाधिक तब होती है जब पत्ती पूर्ण परिपक्व होती है।
जैसे पत्ती पुरानी पड़ती जाती है, हरितलवक की कार्यक्षमता कम हो जाती
है। पत्ती में प्रकाश संश्लेषण की दर को अनेक विभिन्नताएॅं प्रभावित
करती है। जैसे-
- रंध्रों की संख्या, संरचना एवं वितरण ।
- अंतरकोशिकीय स्थानों का आकार एवं वितरण ।
- पैलिसेड एवं स्पंजी ऊतकों का आपेक्षिक अनुपात।
- क्यूटिकिल की मोटार्इ इत्यादि ।
प्रकाश संश्लेषण पदार्थों की मांग- तेजी से बढ़ते पौधों के प्रकाश
संश्लेषण की दर परिपक्व पौधों से अधिक होती है। जब विभाजयो तक को
हटाने से प्रकाश संश्लेषण की मांग घट जाती है तो प्रकाश संश्लेषण की
दर घट जाती है।
2. बाह्यकारक
प्रकाश –
संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले प्रमुख बाह्य कारक है- तापमान,
प्रकाश, कार्बनाइऑक्साइड, जल तथा खनिज इत्यादि ।
- सीमाकारी कारकों की संकल्पना- जब कोर्इ रासायनिक प्रक्रिया एक से अधिक कारकों
से प्रभावित होती है, तब उस प्रक्रिया की दर उस कारक पर निर्भर रहती हैं जो अपने
न्यूनतम मान के सबसे समीप हो अथवा सबसे कम मात्रा (या सांद्रता अथवा दर) में
उपस्थित होने वाले कारक पर निर्भर करती है। सबसे कम मात्रा वाले कारक को
सीमाबद्धकारक कहते हैं। उदाहरण के किए यदि प्रकाश संश्लेषण के लिए जरूरीकारक
ताप, प्रकाश एवं CO2 पर्याप्त मात्रा में हों तो प्रकाश संश्लेषण की दर सर्वाधिक होगी, परंतु
इनमें से एक भी कारक की मात्रा यदि कम हो तो प्रकाश संश्लेषण की दर घट जाती है।
इसे ही सीमाकारी कारकों का नियम अथवा ब्लैकमेन का सीमाकारी नियम भी कहते हैं। - प्रकाश- प्रकाश संश्लेषण की दर प्रकाश तीव्रता के साथ-साथ बढ़ती जाती है। केवल
बादल घिरे दिन में प्रकाश कभी भी सीमाबद्ध कारक नहीं होता।
एक विशिष्ट प्रकाश तीव्रता पर प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त होने वाली CO2 तथा श्वसन
के दौरान उत्सर्जित CO2 की मात्रा समान होती है। प्रकाश तीव्रता के इस बिन्दु को
समायोजन बिंदु कहते है।
प्रकाश का तंरगदैध्र्य भी प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करता है। लाल प्रकाश तथा
कुछ हद तक नीला प्रकाश, प्रकाश संश्लेषण की दर को बढ़ा देता है (सक्रिय वर्णक्रम
देखें)। - तापमान- बहुत अधिक तथा बहुत कम तापमान प्रकाश संश्लेषण की दर को कम करता
है। प्रकाश संश्लेषण की दर 5o – 37o C तक बढ़ती हैं, परंतु इससे अधिक तापमान होने
से इसमें तीव्र गिरावट आती है क्योंकि अधिक तापमान पर अप्रकाशी अभिक्रिया में भाग
लेने वाले एंजाइम निष्क्रिय हो जाते हैं। 5o – 37o C के बीच प्रति 10o C तापमान बढ़ते
पर प्रकाश संश्लेषण की दर दुगनी हो जाती है अर्थात् Q10 = 2 (Q = गुणांक)। - कार्बन डाइऑक्साइड- कार्बन डाइऑक्साइड, प्रकाश संश्लेषण की प्रमुख कच्ची सामग्री
है । अत: इसकी सांद्रता अथवा मात्रा प्रकाश संश्लेषण को प्रमुखता से प्रभावित करती है।
यह वातावरण में अपनी अल्पमात्रा (0.03 प्रतिशत) के कारण प्राकृतिक रूप से सीमाबद्ध
कारक के रूप में होती है। अनुकूल तापमान एवं प्रकाश तीव्रता पर यदि CO2 की आपूर्ति
बढ़ा दी जाए तो प्रकाश संश्लेषण की दर प्रमुखता से बढ़ जाएगी। - जल- जल अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करता है मृदा में पानी
की कमी से पौधें द्वारा जल हानि को रोकने के लिए रंध्र बंद हो जाएगा। अत: CO2 का
वातावरण से अवशोषण नहीं हो सकेगा जिससे प्रकाश संश्लेषण में कमी आ जाएगी। - खनिज यौगिक- कुछ खनिज यौगिक जैसे, तांबा मैगनीज तथा क्लोराइड इत्यादि प्रकाश
संश्लेषी इंजाइमों के हिस्से है तथा मैंग्नीशियम हरितलवक का एक भाग है। अत: ये भी
अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करते हैं, क्योंकि ये हरितलवक तथा
एंजाइमों के मुख्य घटक है।
रसायनी संश्लेषण
जब पौधे प्रकाश ऊर्जा का उपयोग कर कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बोहाइड्रेट में
अपचयित कर अपना भोजन बनाते हैं तो उन्हें प्रकाश संश्लेषी स्वपोष्ेषी कहते हैं । कुछ
जीव अकार्बनिक पदार्थो के जैवीय ऑक्सीकरण द्वारा उत्पन्न रासायनिक ऊर्जा से कार्बन
डाइऑक्साइड को कार्बोहाइड्रेट में अपचयित करते हैं। ये जीवाणु रसायन-संश्लेषी स्वपोष्ेषी कहलाते हैं। ये प्रक्रिया अनेक रंगहीन जीवाणुओं में पार्इ जाती है । क्योंकि ये
जीवाणु कार्बन डाइऑक्साइड को कार्बोहाइड्रेट में अपचयित करने के लिए रासायनिक
ऊर्जा का प्रयोग करते हैं अत: इस प्रक्रिया को रसायनी-संश्लेषण कहते है।
हम रसायनी
संश्लेषण को इस प्रकार भी परिभाषित कर सकते हैं कार्बन स्वागीकरण की वह विधि
जिसमें CO2 का अपचयन अकार्बनिक पदार्थो के ऑक्सीकरण द्वारा प्राप्त रासायनिक
ऊर्जा द्वारा प्रकाश की अनुपस्थिति में होता है।
सामान्य रसायन संश्लेषी है :
- नाइट्रीकरण जीवाणु-नाइट्रोसोमोनास- ये NH3 को NO2 में
ऑक्सीकृत करते हैं । - सल्फर जीवाणु ।
- लौह-जीवाणु
- हाइड्रोजन एवं मीथेन जीवाणु ।
रसायन – संश्लेषी एवं प्रकाश संश्लेषण में अंतर
रसायन संश्लेषी | प्रकाश संश्लेषी |
---|---|
1. यह केवल रंगहीन वायवीय जीवाणुओं में होता है। |
1. यह हरे पौधे एवं हरे जीवाणुओं में होता है। |
2. इस प्रक्रिया में CO2 का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन हरितलवक एवं प्रकाश की अनुपस्थिति में होता है। |
2. CO2 एवं H2O प्रकाश एवं हरितलवक की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित हो जाते है । |
3. यहाँ अकार्बनिक पदार्थो के ऑक्सीकरण से निकली ऊर्जा का उपयोग कार्बोहाइड्रेट के संश्लेषण में होता है। |
3. प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है तथा कार्बोहाइड्रेट रूप में संचित हो जाती है। |
4. इस प्रक्रिया में कोर्इ वर्णक भाग नहीं लेता है तथा ऑक्सीजन भी मुक्त नहीं होती है । |
4. अनेक वर्णक भाग लेते है तथा ऑक्सीजन उपोत्पाद के रूप में मुक्त होती है। |
5. इसमें प्रकाश फास्फारिलीकरण नहीं होता है । |
5. प्रकाश फास्फारिलीकरण होता है अर्थात् ATP का निर्माण होता है। |