- पर्याप्त आहार
- संतुलित आहार
पर्याप्त आहार
इस आहार से तात्पर्य उस आहार से है, जो भूख तो शांत कर देता है। और
व्यक्ति का जीवन चलता रहता है। उसे जीवन जीने लायक ऊर्जा मिलती रहती है।
किन्तु इस आहार से न तो शरीर का वृद्धि विकास उचित प्रकार से होता है। और
ने ही शरीर स्वस्थ रह पाता है। क्योंकि पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में उपस्थित नहीं
होते हैं। जिसके कारण पोषक तत्व हीनताजन्य रोगों की सम्भावना बनी रहती है।
इसकी परिभाषा हम इस प्रकार दे सकते हैं। ‘‘अत: वह आहार जिसकी मात्रा तो व्यक्ति की आवश्यकतानुसार होती है।
किन्तु उसमें पोषक तत्वों की मात्रा आवश्यकतानुसार नहीं होती है। वह पर्याप्त
आहार कहलाता है।’’
संतुलित आहार
- ऊर्जा प्राप्ति के लिये।
- शरीर को वृद्धि और विकास के लिये।
- शरीर को निरोग और स्वस्थ रखने के लिये।
अत: उसी आहार को हम संतुलित आहार कह सकते हैं। जो हमारे शरीर को
ऊर्जा की आवश्यकता, शरीर निर्माणक तत्वों की आवश्यकता, तथा सुरक्षात्मक तत्वों
की आवश्यकता को पूरा कर सके। क बार भोजन तृप्तिदायक होने के बावजूद
संतुलित नहीं होता जैसे यदि को व्यक्ति मिठाइयों का बहुत शौकीन है। यदि हम
उसे भरपेट मिठा खिलाते हैं तो उसकी भूख शांत हो जायेगी और उसे तृप्ति भी
मिल जायेगी। परन्तु मिठा में अन्य सुरक्षात्मक पोषक तत्व अनुपस्थित होने से यह
भोजन संतुलित आहार की श्रेणी में नहीं आयेगा।
इसी प्रकार एक मजदूर को एक बार के भोजन के लिये 7-8 रोटी व चावल
की आवश्यकता होती है। यदि हम उसके आहार में 2-3 रोटी थोड़े चावल रख दें
किन्तु दाल, सब्जी, फल आदि यदि पर्याप्त मात्रा रखे। तो भी यह भोजन मजदूर के
लिये संतुलित आहार नहीं होगा। क्योंकि इस आहार की मात्रा मजदूर के आवश्यकता
से कम है। हालांकि सभी पोषक तत्व उपस्थित है। किन्तु मात्रा तृप्तिदायक नहीं हैं।
अत: वह भोजन संतुलित आहार श्रेणी में आ सकता है। जिसकी मात्रा और पोषक
तत्व व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार होंगे।
I.C.M.R. द्वारा संतुलित आहार –
1992 में संतुलित आहार में इन बातों को ध्यान में रखा गया :-
- संतुलित आहार में कुल ऊर्जा का 70 प्रतिशत भाग अनाजों द्वारा लिया जाये।
- आहार में अनाज और दाल का प्रतिशत 4 और 1 हो।
- सब्जियों की कुल मात्रा 150हउ हो।
- वसा द्वारा प्राप्त द्वारा कुल ऊर्जा केवल 15% हो।
- चीनी व गुड़ द्वारा प्राप्त ऊर्जा कुल ऊर्जा का 5% हो।
व्यक्ति को स्वस्थ और निरोग जीवन यापन करने के लिए संतुलित आहार का अत्यधिक महत्व है। जो कि इस प्रकार है।
- आवश्यकतानुसार भोजन की प्राप्ति
- आवश्यकतानुसार पोषक तत्वों की प्राप्ति
- पूर्ण संतुष्टि
- उच्च भोज्य ग्राहिता
- वृद्धि और विकास में सहायक
- रोग प्रतिरोधी
- उचित पाक विधियों का प्रयोग
संतुलित आहार का महत्व
- आवश्यकतानुसुसार भोजन की प्राप्ति – संतुलित आहार वही होता है। जिसके द्वारा व्यक्ति की भूख शांत हो सके, इसलिए संतुलित आहार में भोजन की मात्रा पर्याप्त होती है।
- आवश्यकतानुुसार पोषक तत्वोंं की प्राप्ति – संतुलित आहार इसलिए व्यक्ति के लिये महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें आहार की मात्रा के साथ-साथ पोषक तत्व भी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं, जिससे व्यक्ति निरोग बना रहता है।
- पूर्ण संतुष्टि की प्राप्ति – उस भोजन को हम सही आहार की श्रेणी में नहीं ला सकते जिससे संतुष्टि प्राप्त न हो। संतुलित आहार व्यक्ति, के तन और मन दोनों को संतुष्ट करने में सक्षम होता है।
- उच्च भोज्य ग्राहिता – वह भोजन ही सही भोजन हो सकता है। जिसे देखकर, सँूघकर भोजन को ग्रहण करने की इच्छा जाग्रत हो जाये। संतुलित भोजन में ग्राहिता का गुण पाया जाता है।
- वृद्धि आर विकास में सहायक – संतुलित आहार में सभी पोषक तत्व व्यक्ति की आवश्यकता के अनुसार होते हैं। इसलिये इस आहार से वृद्धि और विकास उचित प्रकार से सम्भव हो सकता है।
- रोग प्रतिरोधी – इस भोजन में सभी पोषक तत्व होने से इसमें रोगप्रतिरोधक क्षमता अधिक पायी जाती है।
- उचित पाक विधियों का प्रयोग – इस आहार में उचित पाक विधियों का प्रयोग किया जाता है। जिससे भोज्य पोषक तत्व संरक्षित बने रहते हैं।
संतुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारक
संतुलित आहार प्रत्येक के लिये भिन्न होता है। जो आहार एक व्यक्ति के लिये
संतुलित है। वह आवश्यक नहीं दूसरे व्यक्ति के लिये भी संतुलित हो, क्योंकि हर व्यक्ति
के भोजन की मात्रा तथा पोषक आवश्यकतायें भिन्न-भिन्न होती हैं। संतुलित आहार की
भिनन्ता को ये तत्व प्रभावित करते हैं :-
1. उम्र-
भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में संतुलित आहार में उपस्थित पोषक तत्वों की
आवश्यकतायें भिन्न होती है। जैसे बाल्यावस्था में शारीरिक, मानसिक विकास तीव्र
गति से होता है। अत: इस समय शरीर निर्माणक तत्व (प्रोटीन, खनिज लवण) की
आवश्यकता अधिक हो जाती है। इस अवस्था में बालक अत्यधिक क्रियाशील भी
होता है और अधिक ऊर्जा व्यय करता है। इसलिए अधिक ऊर्जा युक्त आहार भी
आवश्यक होता है।
किशोरावस्था में शारीरिक विकास प्राय: पूर्ण हो जाता है, किन्तु इस समय
शारीरिक एवं मानसिक श्रम अधिक करने से कोशिकाओं की टूट-फूट अधिक होती
है।
अत: इनके निर्माण के लिये अधिक प्रोटीनयुक्त तथा ऊर्जा युक्त आहार की
आवश्यकता होती है।
प्रौढ़ावस्था में सभी पोषक तत्व सामान्य मात्रा में आवश्यक होते हैं, किन्तु
वृद्धावस्था में माँसपेशियों की शिथिलता के कारण कार्यक्षमता अत्यधिक कम हो
जाती है। इसलिये सभी पोषक तत्व सामान्य से कम आवश्यक होते हैं। ऊर्जा की
भी मात्रा सामान्य से कम हो जाती है।
2. लिंग-
स्त्रियों और पुरूषों की आहार आवश्यकतायें भिन्न-भिन्न होती है। पुरूषों
का आकार, भार और क्रियाशीलता अधिक होने के कारण स्त्रियों की अपेक्षा अधिक
ऊर्जा की आवश्यकता होती है तथा जो पुरूष शारीरिक श्रम अधिक करते हैं। उनके
शरीर मे कोशिकाओं की टूट-फूट की मरम्मत के लिये अधिक प्रोटीन की भी
आवश्यकता होती है, परन्तु लोहे (आयरन) की आवश्यकता स्त्रियों में पुरूषों की
अपेक्षा अधिक होती है। (मासिक रक्त स्त्राव के कारण) कुछ विशेष परिस्थियों में भी
जैसे- गर्भावस्था, स्तनपान अवस्था में भी स्त्रियों को अधिक पोषक तत्वों की
आवश्यकता होती है।
3. स्वास्थ्य-
व्यक्ति का स्वास्थ भी पोषक आवश्यकताओं को प्रभावित करता है। अस्वस्थता
की स्थिति में क्रियाशीलता कम होने के कारण स्वस्थ व्यक्ति की अपेक्षा कम ऊर्जा
की आवश्यकता होती है, परन्तु यदि दोनों व्यक्तियों की क्रियाशीलता समान हो तो
अस्वस्थ व्यक्ति के शरीर में कोशिकाओं की टूट-फूट अधिक होने के कारण अधिक
निर्माणक तत्व (प्रोटीन) तथा सुरक्षात्मक तत्व (विटामिन व खनिज तत्व) की
आवश्यकता अधिक हो जाती है।
4. शरीर का आकार एवं बनाबट-
शरीर के आकार के अनुसार भी पोषक तत्वों की आवश्यकता भिन्न-भिन्न
होती है। लम्बे तथा अधिक भार वाले व्यक्ति को अधिक मात्रा में ऊर्जा और अन्य
पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। अपेक्षाकृत दुबले-पतले और कम वजन वाले
व्यक्तियों के।
5. जलवायु-
जलवायु और मौसम भी आहार की मात्रा को प्रभावित करता है। ठण्डी
जलवायु में रहने वाले निवासी अधिक क्रियाशील होते हैं, इसलिए उन्हें अधिक
ऊर्जायुक्त आहार की आवश्यकता होती है। इसके साथ-साथ उन्हें शरीर का
तापक्रम बढ़ाने के लिए भी अधिक ऊर्जा की आवश्कयता होती है, जबकि गर्म
जलवायु में रहने वाले निवासी कम क्रियाशील होते हैं, इसलिए कम ऊर्जायुक्त
आहार की आवश्कयता होती है। जलवायु के कारण ही ठंड में भी अधिक वसायुक्त
भोजन इच्छा लगता है, जबकि गर्मी में नहीं।
6. व्यवसाय-
आहार की आवश्यकता इस बात पर निर्भर करती है कि व्यक्ति किस प्रकार
का कार्य करता है। शारीरिक या मानसिक श्रम करने वाले व्यक्तियों को अधिक
ऊर्जा युक्त तथा अधिक प्रोटीन युक्त आहार की आवश्यकता होती है- जैसे
मजदूर। जबकि केवल मानसिक श्रम करने वाले व्यक्ति को कम ऊर्जा युक्त और
अधिक प्रोटीन युक्त आहार की आवश्यकता होती है। जैसे ऑफिस का अधिकारी,
क्योंकि मानसिक श्रम करने वाले व्यक्ति में ऊर्जा का व्यय कम होता है, किन्तु
कोशिकाओं की टूट-फूट अधिक होती है।
7. विशेष शारीरिक अवस्थायें–
जैसे गर्भावस्था, स्तनपान अवस्था आपरेशन के बाद की अवस्था, रोगउपचार के बाद
स्वस्थ होने की अवस्था।