आभूषणों की छटा
षषि सोनी के अनुसार भारतीय आभूशण न केवल देष में अपितु विदेष में भी बहुत लोकप्रिय हैं। जयपुर ज्वेलरी भी इसी श्रेणी में आती है। इनकी सुंदरता देखकर हर कोई अभिभूत हो जाता है।
रूपहले पर्दे पर जब फ़िल्म ‘बाहुबली’ प्रदर्षित हुई तब हर आयु के दर्षक ने उसकी जमकर सराहना की थी। यह फिल्म अपने भव्य सेट और षानदार प्रस्तुति के कारण ही सफल नहीं रही थी अपितु उसमें भूमिका निभा रहीं महिला अभिनेत्रियों द्वारा पहने गए नायाब आभूशणों की वजह से भी यह चर्चा में रही थी। इन आभूशणों को बनाने का श्रेय जयपुर के प्रसिद्ध आम्रपाली ज्वेलर्स को जाता है। यह एकमात्र ऐसा भारतीय आभूशण डिज़ाइन ब्रांड है, जिसने मिलान व न्यूयाॅर्क के फैषन षो में अपनी कलेक्षन प्रस्तुत की है। इतना ही नहीं विक्टोरिया एवं अल्बर्ट संग्रहालयों के साथ करीब से जुड़कर कार्य किया है।
कमाल की कारीगरी
फ़िल्म में इस्तेमाल किए गए लगभग दो हज़ार गहनों में से 1,500 गहने गोल्ड प्लेटेड (सोने का पानी चढ़ा हुआ), चांदी, कुंदन, अलग-अलग रंगों के बहुमूल्य पत्थरों तथा मोतियों से निर्मित थे। इन विविध प्रकार के आभूषणों में नथ से लेकर हार, चूड़ियां, मांग का टीका, पायल, कंगन, कान के कुंडल, पैर के छल्ले, तगड़ी, बाजूबंद इत्यादि मौजूद थे। इतने किस्म के आभूषणों की विषेषता यही है कि ये सभी हाथ से तैयार किए गए थे। आभूषणों की वास्तविक चमक बनाने के लिए चांदी पर सोने का पानी चढ़ाया गया था। हर फ्रेम हेतु आभूषणों में बदलाव लाया गया था ताकि चरित्र का मूलतत्त्व भी बना रहे और उसके दृष्य प्रभाव में कमी भी न हो। वास्तव में ये आभूषण भारतीय संस्कृति का ही आइना होते हैं। इन आभूषणों को देखकर प्राचीनता व पारंपरिक कला का आभास होता है। जयपुर के कारीगर चांदी के इन आभूषणों को बनाने में दक्ष हैं। वर्तमान में आम्रपाली आभूषण सोने, चांदी एवं हीरे से बनाए जाने लगे हैं। अब इन आभूषणों के निर्माण प्रक्रिया में प्राचीनता व परंपरा को बरकरार रखते हुए उनमें नवीनता का पुट भी डाला जाने लगा है। वास्तव में हमारे देष की प्राचीन आभूषण कला को बढ़ावा देने के लिए ही आम्रपाली ज्वेलरी का निर्माण आरंभ किया गया था। वैषाली की नगरवधु के नाम पर ही इन आभूषणों का नामकरण किया गया।
आम्रपाली 500 ईसा पूर्व वैषाली राज्य की नगरवधु थी। वह एक कुषल नर्तकी भी थी और वह कलात्मक आभूषण धारण किया करती थी। ऐसी मान्यता है कि आदिवासी महिलाएं जिस प्रकार के चांदी के आभूषण पहना करती थीं, वे आम्रपाली के आभूषणों से प्रेरणा लेकर ही बनाए जाते थे। जयपुर में वर्ष 1978 में आम्रपाली आभूषणों का निर्माण आरंभ किया गया। इनके निर्माण कार्य से जुड़े लोगों ने भारत के दूरदराज़ के आंतरिक हिस्सों से पुराने चांदी के टुकड़े एकत्रित किए। इसके अलावा विलुप्त हो रहे पुराने आभूषणों का संग्रह करना भी आरंभ किया गया था। कुषल कारीगरों के हाथों का ही कमाल था कि उन्होंने इनके डिज़ाइन में आदिवासी भारतीय गहनों के तत्त्वों का उपयोग करके पारंपरिक तरीकों को पुनर्जीवित किया। इसका परिणाम यह निकला कि आम्रपाली नामक षैली देखने को मिली। उल्लेखनीय है कि महाराजा जयसिंह ने जब जयपुर नगर की स्थापना की थी तब उन्होंने भारत के प्रत्येक प्रांत से कलावंतों, हुनरमंदों और हस्तषिल्पियों को लाकर यहां बसाना आरंभ किया था। बस तभी से ये कारीगर यहां रहकर गहनों के निर्माण कार्य में पीढ़ियों से अपना योगदान दे रहे हैं।
बहु-उपयोगी आभूशण
आज पुरातन आभूशणों को समय की मांग एवं ग्राहको की रुचि के अनुरूप नए रंग-रूप में गढ़ना आरंभ किया गया है। आम्रपाली आभूषणों में आपको लीक से हटकर डिज़ाइन देखने को मिलेंगे। आधुनिकता के बावजूद इन आभूषणों में आदिवासी आभूषणों को एथनिक रूप देने की कला साफ़ झलकती है। इस प्रकार के आभूशणों में इतनी विविधता व इतने स्टाइल पाए जाते हैं कि हर वर्ग की महिलाएं इन्हें खरीदना पसंद करती हैं। इन आभूशणों की विषेशता यही है कि ये सभी हाथ से बने होते हैं तथा मषीनों की मदद से बने गहनों से काफी भिन्नता लिए होते हैं। कई गहने ऐसे भी होते हैं जो बहु-उपयोगी होते हैं। उदाहरण के लिए नेकलेस को आप गले के अलावा ब्रेसलेट की भांति अपनी कलाई पर भी पहन सकते हैं। इन आभूशणों का अनोखा डिज़ाइन ही इनके आकर्शण का केंद्र होता है। आपको हर एक गहने का डिज़ाइन एक दूसरे से भिन्न प्रतीत होगा। इन आभूशणों को देखकर स्पश्ट हो जाता है कि इनके डिज़ाइन से किसी प्रकार का समझौता नहीं किया जाता। निस्संदेह इनमें भारतीय कला, संस्कृति एवं वास्तुषिल्प का संगम देखने को मिलता है। आपको जानकर आष्चर्य होगा कि इस प्रकार के आभूशण विदेषियों को भी खूब भाते हैं। वर्तमान में ये गहने अंतरराश्ट्रीय डिज़्ााइन के अनुरूप भी बनाए जाते हैं। विदेषी महिलाएं ट्राइबल ज्वेलरी के नाम से लोकप्रिय इन चांदी, सोने अथवा हीरे के गहनों को बड़े चाव से पहनती हैं।
मिली लोकप्रियता
वर्श 1996 से लेकर वर्श 2003 तक आयोजित होने वाले मिस इंडिया जैसे आयोजनों में भी प्रतिभागियों ने आम्रपाली आभूशण पहनकर भारत का नाम रोषन किया था। डायना हेडन (मिस वल्र्ड 1997), युक्ता मुखी (मिस वल्र्ड 1999), प्रियंका चोपड़ा (मिस वल्र्ड 2000) और लारा दत्ता (मिस यूनिवर्स 2000) ने आम्रपाली ज्वेलरी पहनकर अंतरराश्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व किया था। क्या आप जानते हैं कि वर्तमान पीढ़ी के लोग इन आम्रपाली गहनों के संबंध में रोचक व ज्ञानवर्धक जानकारी हासिल कर सके, इसके लिए जयपुर में एक संग्रहालय भी बनाया गया है। यह संग्रहालय जनजातीय लोगों में प्रचलित परंपरागत चांदी के आभूषणों के लिए प्रसिद्ध है। यह दैनिक जीवन में घुली-मिली प्राचीन भारतीय आभूषण कला का परिचय कराता है। प्राचीन भारतीय षिल्पकारों ने प्रकृति, धर्म, ज्यामिति अथवा अंतरराष्ट्रीय प्रचलनों के लंबे दौर में जो कुछ देखा-सीखा था, उसे अपने आभूषणों में उकेरा। उस दौर की षिल्पकला कितनी व्यापक थी यह हमें वास्तव में आम्रपाली आभूषणों से ज्ञात होता है।